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Gautamiputra Satkarni’ changed his name to pay respect to mother/गौतमीपुत्र सतकर्णी’ ने माता को सम्मान देने के लिए अपना नाम बदल लिया।

Maharaj Gautamiputra Satakarni !!!

अपनी माता को सम्मान देने के लिए महाराजा शातकर्णि ने अपना नाम ही बदल लिया।। 

भारत की धरती पर ऐसे अनेक महान सम्राट हुए जिन्होंने अपने शस्त्र बल से भारत माता को विदेशी आक्रांताओं से मुक्त कराया. गौतमीपुत्र शातकर्णि ने अपने नाम के आगे अपनी माता गौतमी का नाम जोड़ा. मातृशक्ति को सम्मान देने के लिए उन्होंने उनके नाम पर ही शासन किया और मां भारती को अत्याचारियों से बचाया. लेकिन विदेशी चश्मे वाले इतिहासकारों ने इस महान शासक को इतिहास की गर्त में दबाने का निंदनीय प्रयास किया। 

राजा शातकर्णि के उत्तराधिकारियों के केवल नाम ही पुराणोंद्वारा ज्ञात होते हैं।ये नाम पूर्णोत्संग (शासन काल 18 वर्ष), स्कन्धस्तम्भि (18 वर्ष), मेघस्वाति (18 वर्ष) और गौतमीपुत्र शातकर्णि (56 वर्ष) हैं।इनमें गौतमीपुत्र शातकर्णि के सम्बन्ध में उसके शिलालेखों से बहुत कुछ परिचय प्राप्त होता है। यह प्रसिद्ध शक महाक्षत्रप’नहपान का समकालीन था, और इसने समीपवर्ती प्रदेशों से शक शासन का अन्त किया था। नासिक ज़िले के ‘जोगलथम्बी’ नामक गाँव से सन् 1906 ई. में 13,250 सिक्कों का एक ढेर प्राप्त हुआ था। ये सब सिक्के एक शक क्षत्रप नहपान के हैं। इनमें से लगभग दो तिहाई सिक्कों पर गौतमीपुत्र का नाम भी अंकित है। जिससे यह सूचित होता है कि गौतमीपुत्र शातकर्णि ने नहपान को परास्त कर उसके सिक्कों पर अपनी छाप लगवाई थी। इसमें सन्देह नहीं, कि शकों के उत्कर्ष के कारण पश्चिमी भारत में सातवाहन राज्य की बहुत क्षीण हो गई थी, और बाद में गौतमीपुत्र शातकर्णि ने अपने वंश की शक्ति और गौरव का पुनरुद्धार किया।गौतमीपुत्र शातकर्णि की माता का नाम ‘गौतमी बालश्री’ था। उसने नासिक में त्रिरश्मि पर एक गुहा दान की थी, जिसकी दीवार पर एक प्रशस्ति उत्कीर्ण है। इस प्रशस्ति द्वारा गौतमी बालश्री के प्रतापी पुत्र के सम्बन्ध में बहुत सी महत्त्वपूर्ण बातें ज्ञात होती है। उसमें राजा गौतमीपुत्र शातकर्णि के जो विशेषण दिए हैं, उसमें से निम्नलिखित विशेष रूप से ध्यान देने योग्य हैं –असिक असक मुलक सुरठ कुकुर अपरान्त अनूप विदभ आकर (और) अवन्ति के राजा, बिझ छवत पारिजात सह्य कण्हगिरि मच सिरिटन मलय महिद सेटगिरि चकोर पर्वतों के पति, जिसके शासन को सब राजाओं का मंडल स्वीकार करता था, क्षत्रियों के दर्प और मान का मर्दन करने वाले, शक यवन पह्लवों के निषूदक, सातवाहन कुल के यश के प्रतिष्ठापक, सब मंडलों से अभिवादितचरण, अनेक समरों में शत्रुसंघ को जीतने वाले, एकशूर, एक ब्राह्मण, शत्रुजनों के लिए दुर्घर्ष सुन्दरपुर के स्वामीआदि।

इस लेख से स्पष्ट है कि असक (अश्मक) मूलक (मूलक, राजधानी प्रतिष्ठान), सुरठ (सौरास्ट्रा), कुकुर (काठियावाड़ के समीप एक प्राचीन गण-जनपद), उपरान्त (कोंकण), अनूप (नर्मदा की घाटी का प्रदेश), विदर्भ (विदर्भ, बरार), आकर (विदिशा का प्रदेश) और अवन्ति गौतमीपुत्र शातकर्णि के साम्राज्य के अंतर्गत थे। जिन पर्वतों का वह स्वामी था, वे भी उसके साम्राज्य के विस्तार को सूचित करते हैं। विझ (विन्ध्य) छवत (ऋक्षवत् या सतपुड़ा), पारिजात (पश्चिमी विन्ध्याचल), सह्य (सहाद्रि), कण्हगिरि (कान्हेरी या कृष्णगिरि), सिरिटान (श्रीपर्वत), मलय (मलयाद्रि), महिन्द्र (महेन्द्र पर्वत) और चकोर (पुराणों में श्रीपर्वत की अन्यतम पर्वतमाला) उसके राज्य के विस्तार पर अच्छा प्रकाश डालते हैं।
इस प्रशस्ति से यह निश्चित हो जाता है कि गौतमीपुत्र शातकर्णि सच्चे अर्थों में दक्षिणापथपति था, और काठियावाड़, महाराष्ट्र और अवन्ति के प्रदेश अवश्य ही उसके साम्राज्य के अंतर्गत थे।

गौतमीपुत्र शातकर्णि दक्षिणापथ के बेहद प्रभावशाली शासक थे. उन्होंने विदेशी शक जाति के बर्बर अत्याचार से भारत भूमि की रक्षा की थी. उन्होंने 26 वर्ष तक शासन किया. उनके शासनकाल का अधिकतर हिस्सा युद्धों में ही बीता था.

गौतमीपुत्र शातकर्णि तीन समुद्रों के अधिपति थे शातकर्णि महाराज।।

गौतमीपुत्र शातकर्णि ने ‘त्रि-समुद्र-तोय-पीत-वाहन’ उपाधि धारण की थी.  जिससे यह पता चलता है कि उनका साम्राज्य पूर्वी, पश्चिमी तथा दक्षिणी सागर अर्थात बंगाल की खाड़ी, अरब सागर एवं हिन्द महासागर तक फैला हुआ था. गौतमी पुत्र शातकर्णि का शासन ऋशिक (कृष्णा नदी के तट पर स्थित ऋशिक नगर), अयमक (प्राचीन हैदराबाद राज्य का हिस्सा), मूलक (गोदावरी के निकट एक प्रदेश जिसकी राजधानी प्रतिष्ठान थी) तथा विदर्भ (आधुनिक बरार क्षेत्र) जैसे प्रदेशों तक फैला हुआ था. उनके प्रत्यक्ष प्रभाव में रहने वाला क्षेत्र उत्तर में मालवा तथा काठियावाड़ से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक तथा पूर्व में बरार से लेकर पश्चिम में कोंकण तक फैला हुआ था.

गौतमीपुत्र शातकर्णि ने 24 साल तक शासन किया था।।

गौतमी पुत्र शातकर्णि का शासन काल 106 से 130 ईस्वी का माना जाता है. उन्होंने कुल 24 साल तक शासन किया. वह सातवाहन वंश के 23 वें शासक थे. वह अपने पूर्ववर्ती सातवाहन शासकों में सबसे ज्यादा शक्तिशाली और प्रतिभाशाली थे. उनके पिता का नाम शिवस्वाति और माता का नाम गौतमी बलश्री था। 

गौतमी पुत्र शातकर्णी ने ही सबसे पहले अपने नाम के साथ माता के नाम का उल्लेख शुरु किया. यह नारीशक्ति को सम्मान देने का उनका तरीका था. जिसके बाद सातवाहन वंश के शासकों के नाम के साथ उनकी माता का नाम भी जोड़ा जाने लगा।  

गौतमी पुत्र शातकर्णी के समय को सातवाहनों का पुनरुद्धार काल कहा गया. उनके शासनकाल में सातवाहनों ने अपनी खोई हुई शक्ति एवं प्रतिष्ठा फिर से हासिल कर ली. उन्होंने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी. भारतीय इतिहास में सातवाहन वंश ने 300 वर्ष(60ई.पू से 240 ईस्वी) तक शासन किया था. शातकर्णि का वंश इतिहास में आंध्र वंश के नाम से जाना जाता है.

शातकर्णि महाराज ने कई विदेशी आक्रमणकारियों के लड़े और पराजित किये थे। ।

गौतमी पुत्र शातकर्णि के साम्राज्य और उनकी उपलब्धियों के बारे में उनकी माता गौतमी बालश्री के नासिक शिलालेखों से जानकारी प्राप्त होती है. गौतमी पुत्र शातकर्णी के तीन अभिलेख प्राप्त होते हैं. जिसमें से दो नासिक से तथा एक कार्ले से मिला है. नासिक का पहला लेख उसके शासन काल के 18वें तथा दूसरा 24 वें साल में तैयार किया गया.  कार्ले का लेख भी उसके शासन काल के 18 वें वर्ष का ही है. इन अभिलेखों के अलावा गौतमी पुत्र शातकर्णी के सिक्के भी प्राप्त हुए हैं. जो उनके गौरव की कहानी बताते हैं.

शातकर्णि महाराज ने  शक, यवन तथा पह्लव जैसी विदेशी शक्तियों का विनाश किया. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्षहरात वंश के शक राजा नहपान को पराजित करना और उसके राज्य पर कब्जा करना था।। 

नहपान के साथ गौतमीपुत्र शातकर्णि का युद्ध उनके शासनकाल के 17वें साल में हुआ. इस युद्ध में शातकर्णि महाराज ने नहपान का विनाश करके अनूप, सौराष्ट्र और अवन्ति जैसे क्षेत्रों को हासिल किया। 

नासिक से शातकर्णि काल के सिक्के प्राप्त होते हैं, जो मूल रुप से नहपान के सिक्के थे. जिन्हें गौतमीपुत्र ने दोबारा अपनी मुहर डालकर ढलवाया था। 

श्रीराम के समान गौतमीपुत्र शातक का शासन काल रामराज्य था।।

गौतमी पुत्र शातकर्णि ने नासिक के समीप वेणाकटक नगर बसाया. वह ब्राह्मण थे. लेकिन उन्होंने दूसरे धर्मों का भी संरक्षण किया. उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं को अजकालकीम(महाराष्ट्र) तथा करजक (महाराष्ट्र) जैसे क्षेत्र प्रदान किये. गौतमी पुत्र शातकर्णी को नासिक प्रशस्ति में “वेदों का आश्रय” (आगमाननिलय) तथा “अद्वितीय ब्राह्मण” (एकब्राह्मण) के नाम से पुकारा गया है. उन्हें “द्विजों” तथा “द्विजेतर” जातियों के कुलों का वर्धन करने वाला ( द्विजावरकुटुंब विवधन ) कहा गया है.

गौतमीपुत्र शातकर्णि अपनी प्रजा के  बीच बेहद लोकप्रिय राजा थे. उनके जीवन काल में ही उनपर गाथाएं और कविताएं लिख दी गई थीं। 

पुराणो और इतिहासकारों के अनुसार गौतमीपुत्र शातकर्णि का इतिहास बहुत ही विवादित रहा है।

पुराणों के अनुसार इसने 56 साल और जैन अनुश्रुति के अनुसार 55 साल तक राज्य किया था। यदि सातवाहन वंश के प्रथम राजा का शासन काल 210 ई. पू. के लगभग माना जाए तो पुराणों की वंशतालिका के अनुसार शातकर्णि का शासन काल समय यही बनता है। विक्रमी संवत का प्रारम्भ 57 ई. पू. में होता है। यह संवत शकों की पराजय सदृश महत्त्वपूर्ण घटना की स्मृति में ही प्रारम्भ हुआ था, और अनुश्रुति के अनुसार जिस राजा विक्रमादित्य के साथ इसका सम्बन्ध है, वह यदि गौतमीपुत्र शातकर्णि ही हो, तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। पर इससे यह नहीं समझना चाहिए, कि विक्रम संवत का प्रारम्भ गौतमीपुत्र शातकर्णि द्वारा किया गया था। इस संवत का प्रारम्भ मालवगण की स्थिति से हुआ माना जाता है।शक आक्रान्ताओं ने जिस प्रकार सातवाहन के गौरव को क्षीण किया था, वैसे ही गणराज्यों को भी उन्होंने पराभूत किया था। शकों की शक्ति के क्षीण होने पर भारत के प्राचीन गणराज्यों का पुनरुत्थान हुआ। शकों की पराजय की श्रेय केवल सातवाहनीवंशी सातकर्णि को ही नहीं है। मालवगण के वीर योद्धाओं का भी इस सम्बन्ध में बहुत कर्तृत्व था। उनके गण की पुनःस्थिति से एक नए संवत का प्रारम्भ हुआ, जो बाद में विक्रम-संवत कहलाया। पर जायसवाल जी की यह स्थापना भी बड़े महत्त्व की है, कि गौतमीपुत्र शातकर्णि का ही अन्य नाम या उपनाम विक्रमादित्य भी था, और वही भारतीय अनुश्रुति का ‘शकारि या शकनिषुदक विक्रमादित्य’ था। पर यह मत पूर्णतया निर्विवाद नहीं है। शातकर्णि के काल के सम्बन्ध में भी ऐतिहासिकों में मतभेद है। अनेक इतिहासकार उसे दूसरी ई. पू. का मानते हैं।

साउथ फिल्म इंडस्ट्री ने महाराज  सातकर्णि पर फिल्म बनाकर हमे उनके इतिहास से अवगत कराया।।

भारत के सारे राजा उनके साथ थे । कुछ उनके अधिपत्य में शासन कर रहे थे तो कुछ उनके मित्र बन कर।

ऐसे महान राजा का नाम ही हमारे इतिहासकारों ने हमे नहीं बताया भला हो साउथ फिल्म इंडस्ट्री का जिन्होंने इस महान राजा पर फिल्म बनाकर हमे महाराज सातकर्णि के इतिहास से अवगत कराया। । 

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