भारत देश का निर्माण और इसके बसने की संपूर्ण कहानी ।
भारत देश का निर्माण किसने किया और किस राजा भरत ने किया क्योंकि हमारे पुराणो मे ऐसे 3 महान राजा भरत हुवे ,तो उनमें से किसने इस भारतवर्ष का निर्माण किया।
श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कंध के अनुसार त्रेता युग के राजा भरत ने भारत वर्ष का निर्माण किया था ।
त्रेतायुग में अर्थात भगवान राम के काल के हजारों वर्ष पूर्व प्रथम मनु स्वायंभुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारतवर्ष को बसाया था, तब इसका नाम कुछ और था।
वायु पुराण के अनुसार महाराज प्रियव्रत का अपना कोई पुत्र नहीं था तो उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था। नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था। इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम ‘भारतवर्ष’ पड़ा। हालांकि कुछ लोग मानते है की पुरुवंस के प्रतापी राजा दुष्यंत और शंकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष नाम पड़ा।
इस भूमि का चयन करने का कारण था कि प्राचीनकाल में जम्बू द्वीप ही एकमात्र ऐसा द्वीप था, जहां रहने के लिए उचित वातारवण था और उसमें भी भारतवर्ष की जलवायु सबसे उत्तम थी। यहीं विवस्ता नदी के पास स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा निवास करते थे।
स्वायंभुव मनु के पौत्र राजा प्रियव्रत ने अपनी पुत्री के 10 पुत्रों में से 7 को संपूर्ण धरती के 7 महाद्वीपों का राजा बनाया दिया था और अग्नीन्ध्र को जम्बू द्वीप का राजा बना दिया था। इस प्रकार राजा भरत ने जो क्षेत्र अपने पुत्र सुमति को दिया वह भारतवर्ष कहलाया। भारतवर्ष अर्थात भरत राजा का क्षेत्र।
भरत एक प्रतापी राजा एवं महान भक्त थे। श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कंध एवं जैन ग्रंथों में उनके जीवन एवं अन्य जन्मों का वर्णन आता है। महाभारत के अनुसार भरत का साम्राज्य संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में व्याप्त था जिसमें वर्तमान भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिज्तान, तुर्कमेनिस्तान तथा फारस आदि क्षेत्र शामिल थे।
भ्राता या भ्राता-वर (भरत-वर्ण) को दुष्यंत के पुत्र भरत के नाम से लिया गया है। कुछ अन्य पुराणिक अंश भारतीय लोगों को संदर्भित करते हैं, जिन्हें महाभारत में दुष्यंत के पुत्र भरत के वंशज के रूप में वर्णित किया गया है।
यह कहानी राजा दुष्यंत और शकुंतला के प्रेम कहानी से शुरू होती है। शिकार पर गए राजा ने शकुंतला को देखा और उनसे प्रेम कर बैठे। राजा दुष्यंत ने शकुंतला को विवाह के लिए पूछा। थोड़ी हिचकिचाहट के पश्चात् शकुंतला मान गयी। विवाह के पश्चात् राजा कुछ समय तक शकुंतला के आश्रम में रहे, फिर उन्हें अपने राज्य के लिए रवाना होना पड़ा। जाते समय राजा ने शकुंतला को विवाह के चिन्ह के हिसाब से एक अंगूठी दी और कहा की जब भी उसे राजा की याद आये वह रानी बनकर उनके राज्य में आ सकती है।
कई दिन बीत गए। एक दिन जब शकुंतला राजा दुष्यंत के खयालो में खोयी थी तब ऋषि दुर्वासा उसके आश्रम में भिक्षा के लिए आये। खयालो में खोयी शकुंतला ने उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया। क्रोध में आकर ऋषि ने श्राप दिया के जिसके खयालो में शकुंतला खोई है, वह उसे भूल जायेगा। शकुंतला के बहुत माफ़ी मांगने के बाद ऋषि ने कहा की राजा की दी हुई कोई निशानी रहने से वह शकुंतला को पहचान पाएंगे। कुछ समय बाद जब शकुंतला गर्भवती हुई तो उसे राजा के पास ले जाया गया। श्राप के कारण राजा शकुंतला को पहचान नहीं पाए। जब शकुंतला अंगूठी ढूंढ़ने लगी तो उसे याद आया की वह तो झील में गिर गयी थी जब शकुंतला पानी पीने गयी थी। निराश होकर सब आश्रम लौटे और शकुंतला ने एक बालक को जन्म दिया।
कई साल बीत गए। एक दिन राज्यसभा में एक मछवारा आया और उसने राजा को एक अंगूठी दी जो उसे एक मछली के पेट से मिली जब वह झील में मछली पकड़ने गया था। अंगूठी देखते ही राजा को सब याद आ गया। वह तुरंत आश्रम वापस गए। वहा उन्हें एक छोटा बालक दिखा जो शेर की सवारी कर रहा था। राजा ने अपने बेटे को तुरंत पहचान लिया।
उसी बालक का नाम भरत रखा गया। आगे चलकर भरत इस देश का चक्रवर्तिन सम्राट बने और हमारे देश का नाम उन्ही के नाम पे रखा गया।
पुरु राज्य के यशस्वी राजा दुष्यंत और ऋषि कन्या शकुन्तला की संतान भरत का बचपन वन में ही अपनी माता के सान्निध्य में बीता। अतः वन जीवों के बीच ही उन्होंने बाल-क्रीड़ाएं कीं, सिंह शावकों के साथ खेलकूद कर बड़े हुए। भरत का एक नाम सर्वदमन भी है। चूंकि उन्होंने बचपन में ही बड़े-बड़े राक्षसों, दानवों और सिंहों का दमन किया था, इसलिए सर्वदमन कहलाए। उन्होंने समस्त वन्य तथा पर्वतीय पशुओं को भी सहज में परास्त कर आपने अधीन कर लिया था।
कुछ वर्षों बाद राजा दुष्यंत अपने पुत्र को पुरु राज्य ले गये। भरत ने पिता का राज्य सम्भाला। राज्य पद मिलने पर भरत ने अपने राज्य का विस्तार किया। वीर, बलवान और पराक्रमी होने के साथ-साथ उनकी ख्याति दानशील राजा के रूप में भी है। उनके प्रतापी राजा होने के कारण ही हमारे देश का नाम, उन्हीं के नाम पर भारत पड़ा। उनके बाद उनका वंश ‘भारतवंशी’ कहलाने लगे।
भरत चक्रवर्ती सार्वभौम सम्राट बने। उनके समय में अनेकानेक आर्य राज्य उनकी अधीनता स्वीकार कर चुके थे। पश्चिम में सरस्वती नदी से शुरू होकर पूर्व में अयोध्या के समीप तक का सब प्रदेश सम्राट भरत के शासन में था। उन्होंने हस्तिनापुर को अपनी राजधानी बनाया। उन्होंने अपने जीवन काल में यमुना, सरस्वती तथा गंगा के तटों पर क्रमशः तीन सौ से लेकर चार सौ के बीच अश्वमेध यज्ञ किये थे।
भरत ने विदर्भराज की तीन कन्याओं से विवाह किया। इन तीन पत्नियों से प्रत्येक से तीन पुत्र हुए। भरत ने अपनी तीनों पत्नियों से कहा कि ‘ये पुत्र मेरे अनुरूप नहीं हैं।’
पत्नियों ने पति के कथन को शाप रूप में मानते हुए, डरकर अपने-अपने पुत्रों का वाहिस्कर कर दिया।
ऐसा होने के बाद, महाभारत के अनुसार भरत ने बड़े-बड़े यज्ञों का अनुष्ठान किया। तब जाकर भारद्वाज नामक पुत्र को प्राप्त किया।
श्रीमद्भागवत् के अनुसार-“तदन्तर वंश के बिखर जाने पर भरत ने ‘मरुत्स्तोम’ यज्ञ किया। इस यज्ञ की समाप्ति पर मरुद्रेण ने भरत को भारद्वाज नामक पुत्र दिया। भारद्वाज जन्म से ब्राह्मण थे, किन्तु भरत का पुत्र बन जाने के कारण क्षत्रिय कहलाए। भारद्वाज ने स्वयं शासन नहीं किया। भरत के देहावसान के बाद अपने पुत्र वितथ को राज्य का भार सौंप दिया और स्वयं वन में चले गये। कठिन तपस्या के बल पर वे महर्षि भारद्वाज कहलाये।
भरत के बाद उनके पुत्र और वंश का क्रमबद्ध विवरण नहीं मिलता; परन्तु भारत में कुछ प्रसिद्ध और प्रतापी राजाओं का वर्णन अवश्य सामने आता है। इस वंश में एक राजा हस्ती हुआ। इसी ने कुरु देश की राजधानी का नाम अपने नाम पर हस्तिनापुर रखा।
हस्ती का पुत्र अजमीढ़ हुआ। उसके समय में भारत वंश की अनेक शाखाएं हो गयी थीं। मुख्य शाखा हस्तिनापुर में राज्य करती थी। कुछ अन्य शाखाओं ने पंचालदेश में अपने पृथक् शासन स्थापित किया।
कुरुक्षेत्र के साथ लगा हुआ, गंगा के पूर्व, जो प्रदेश है, उसी का प्राचीन नाम पंचाल देश था। पंचाल के दो भाग थे-उत्तर पंचाल और दक्षिण पंचाल । उत्तर पंचाल की राजधानी अहिच्छत्र थी, जिसके भग्नावशेष इस समय बरेली जिले में मौजूद हैं। दक्षिण पंचाल की राजधानी काम्पिल्य थी, जो वर्तमान समय के फर्रुखाबाद में स्थित है।
हस्तिनापुर, अहिच्छत्र और काम्पिल्य में जो विविध भारतवंशी राज्य स्थापित हुए थे, उनमें आगे चलकर परस्पर युद्ध हुए। हस्तिनापुर के राजा अजमीढ़ के दस पीढ़ी बाद कुरूदेश का राजा संवरण हुआ। उसका समकालीन अहिच्छत्र का राजा सुदास था।
संवरण और सुदास में अनेक युद्ध हुए। अंत में सुदास ने संवरण को उसकी राजधानी हस्तिनापुर में बुरी तरह परास्त किया। इस विजय के बाद सुदास कुरूदेश में बहुत आगे तक बढ़ गया था-उसने यमुना तक के प्रदेश को जीतकर अपने आधीन किया।
सुदास ने उत्तर पंचाल के पड़ोस में विद्यमान अन्य राज्यों पर भी आक्रमण किये। उसकी विजयों से चिंतित होकर संवरण के नेतृत्व में बहुत से राजा उसके विरुद्ध खड़े हुए। सुदास के विरोधी इस गुट में कुरू, मत्स्य, तुर्वसु, द्रुह्यु, शिवि आदि अनेक राजवंशों के राजा हैं। इस युद्ध में भी राजा सुदास की विजय हुई।
सुदास की इस विजय के बाद हस्तिनापुर के राजा संवरण ने भागकर सिन्धु नदी के तट पर स्थित एक दुर्ग में शरण ली।
सुदास का निधन शीघ्र हो गया। उसके उत्तराधिकारी सहदेव और सोमक उसकी तरह वीर नहीं थे। उनकी कमजोरियों का लाभ उठाकर संवरण ने फिर अपनी शक्ति संचित की। उसने कुरू देश को फिर से प्राप्त किया, उत्तर पंचाल को भी विजय कर लिया।
संवरण का पुत्र कुरू हुआ। वह भी पिता के समान वीर राजा था। उसने अपना राज्य विस्तार किया। उसी के नाम पर हस्तिनापुर का प्राचीन वंशज कुरू ‘कौरव वंश’ कहलाया।
अब इन दोनों राजाओं मे भारत देश का नाम भारतवर्ष किसके नाम पर पड़ा आप खुद इसका फैसला करे।
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