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Karamanasha Nadi ki utpatti/करमनाशा नदी के पानी को पीना तो दूर छूने से भी क्यों लोग डरते हैं।

एक ऐसी नदी जिसके पानी पीने से तो दूर छूने से भी लोग डरते हैं। 

भारत मे जहाँ अनेकों  गंगा यमुना कृष्णा और गोदावरी जैसी पवित्र नदियाँ हैं, जिनकी पूजा अर्चना की जाती हैं तो वही एक और ऐसी श्रपित नदी भी हैं जिसके पानी को पीना तो दूर उसके पानी को  छूने से भी लोग डरते हैं। इस नदी का नाम है कर्मनाशा नदी  ( Karmanasa River ) । और मज़ेदार बात यह हैं की ये नदी आगे जाकर पवित्र नदी गंगा मे ही मिल जाती हैं ।

कर्मनाशा दो शब्दों से बना है। पहला कर्म दूसरा नाशा… कर्म यानि आपके द्वारा किये अच्छे बुरे काम और नाशा मतलब नाश होना। माना जाता है कि कर्मनाशा नदी का पानी छूने से काम बिगड़ जाते हैं और अच्छे कर्म भी मिट्टी में मिल जाते हैं। इस नदी को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। लोग बताते हैं कि पूर्व की समय इस नदी के किनारे रहनेवाले लोग फल-फूल खाकर रह जाते थे लेकिन इस नदी का पानी प्रयोग में नहीं लाते थे।

कर्मनाशा नदी की उत्पत्ति के  बारे में पौराणिक कथा।

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा हरिशचंद्र के पिता सत्यव्रत एक बार अपने गुरु वशिष्ठ से सशरीर स्वर्ग में जाने की इच्छा व्यक्त की। गुरु वशिष्ठ ने ऐसा करने से मना कर दिया फिर वे ॠषि वशिष्ठ के पुत्रों के पास गये और उनसे आग्रह करने लगे ऋषि पुत्रों को जब पता चला की सत्यब्रत उनके पिता की बात नहीं मानी और फिर से वही गलती कर रहे हैं तो वे उनको श्राप दे दिये की तुम्हारी इक्षा प्रकृति के विपरीत हैं ऐसे प्रकृति के विपरीत काम सिर्फ चांडाल करते हैं अब से तुम भी चांडाल बन जाओं, फिर सत्यब्रत का शरीर काला पड़ गया और गले नर मुंड की माला आ गई, परंतु उनके सशरीर स्वर्ग जाने की इक्षा कम नहीं हुई । इसके बाद नाराज ऋषि सत्यव्रत वशिष्ठ के प्रतिद्वंदी विश्वामित्र के पास चले गये और यही बात दोहराई। साथ ही उन्होंने वशिष्ठ के मना करने की बात भी बताई। वशिष्ठ से शत्रुता के कारण विश्वामित्र ने तप के बल पर सत्यव्रत को सशरीर स्वर्ग में भेज दिया। इसे देख इंद्रदेव क्रोधित हो गये और उन्हें उलटा सिर करके वापस धरती पर भेज दिया। विश्वामित्र ने हालांकि अपने तप से राजा को स्वर्ग और धरती के बीच रोक दिया। ऐसे में सत्यव्रत बीच में अटक गये और त्रिशंकु कहलाए।

आख़िर क्यों नहीं पीते लोग करमनाशा नदी का पानी?

एक चांडाल के लार से बनी करमनाशा नदी ।

पौराणिक कथा के अनुसार सभी को मालूम हैं की विश्वामित्र का आश्रम बक्सर मे था जो आज भी हैं  इसीलिए ये त्रिशंकु की कथा भी बक्सर की धरती के आसपास ही हुई थी, देवताओं और विश्वामित्र के युद्ध के बीच सत्यव्रत धरती और आसमान में उलटे लटक रहे थे परंतु विश्वामित्र के सत्यब्रत को पुन्ह धरती से आकाश की भेजने लगे तभी इस बीच उनके मुंह से तेजी से लार की धारा टपकने लगी और यही लार नदी के तौर पर धरती पर प्रकट हुई। कहा जाता है कि ऋषि वशिष्ठ के पुत्रों ने राजा सत्यव्रत को चंडाल होने का शाप दे दिया था। सत्यव्रत के लार से नदी बनने के कारण इसे शापित नदी कहा गया, जो आज भी लोग मानते हैं, और इस नदी का पानी नहीं पीते, चुकी करमनाशा नदी त्रिशंकु के लार से बनी थी इसीलिये इसे त्रिशंकु नदी (Trishanku River) या चंडाल नदी भी कहते हैं। 

बक्सर के पास गंगा में मिल जाती है कर्मनाशा नदी।

बिहार के कैमूर जिले से निकलने वाली कर्मनाशा नदी बिहार और उत्तर प्रदेश  में बहती है। यह बिहार और यूपी को बांटती भी है। इस नदी की लंबाई करीब 192 किलोमीटर है। इस नदी का 116 किलोमीटर का हिस्सा यूपी में आता है जबकि बचे हुए 76 किलोमीटर बिहार और यूपी को बांटते हैं। कर्मनाशा नदी उत्तर प्रदेश के सोनभद्र, चंदौली, वाराणसी और गाजीपुर से होकर बहती है और बक्सर के पास गंगा में मिल जाती है।

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