भारत देश मे कई ऐसे रहस्मयी मंदिर व स्थान हैं ,जहाँ के रहस्यों को आज भी वैज्ञानिक सुलझा नहीं पाए हैं, तो वही कुछ ऐसे मंदिर भी जो अपने चमत्कारों तंत्र मंत्र और अंधविश्वासों के चलते प्रचलित हैं, हम आज एक ऐसे ही मंदिर का जिक्र करेंगे जहाँ 6 बजे शाम बाद जाने से लोग पत्थर के बन जाते हैं।
किराड़ू के मंदिरों के बारे बहुत सारी भ्रांतियां फैली हूई हैं कोई कहता है कि इस शहर पर किसी भूत का साया हैतो कोई कहता हैं की मुग़लो के आक्रमण से यहाँ के लोग रातों रात गाँव खाली करके भाग गए, तो कोई कहता है कि इस शहर पर एक साधु के शाप का असर है, उसी के शाप के चलते यहाँ के लोग पत्थर मे तब्दिल हो थे और यही वजह है कि आज भी उस शाप के डर के चलते लोग वहां नहीं जाते हैं। लोगों में अब वहम बैठ गया है।
राजेस्थान के बाड़मेर शहर से 35 किलोमीटर दूरी पर स्थित हैं ये किराडु गाँव जहाँ मंदिरों के खंडहर आज भी उसकी भब्यता को दर्शाते हैं, जहाँ कभी अलीशान शहर हुआ करता था, आज वीरान पड़ा अपनी दशा पे आशु बहा रहा हैं, जहाँ कभी दूर दाराज से व्यापारी आते थे बाज़ार सजता था, जिसकी भब्यता देखने योग्य होगी आज वहाँ एक इंसान नज़र नहीं आता ऐसा क्या हुआ होगा की रातों रात पूरा गाँव खतम हो गया।
किराडु गाँव मे एक 5 आलिशान मंदिरों श्रृखला हैं जिसमे से 3 मंदिर अब खंडहर मे तब्दिल हो चुके है, अब इसे भूतों का भय कहे या अंधविश्वास या साधू के श्राप का भय जो भी हों यहाँ आज भी लोग रात मे नहीं रुकते।
कभी लोग के भीड़ वाला शहर हुआ करता था किराडु परंतु आज वीरान पडा हैं, कभी व्यापार का केंद्र रह चुका है, कभी राजेस्थान का खजुराहों कहे जाने वाले किराड़ू के मन्दिर आज खंडहर मे बदलते जा रहे हैं, आख़िर क्या हैं इसके पिच्छे की कहानी।
कहा जाता हैं कि आज से 900 साल पहले किराड़ू के मंदिरों की ब्याख्या सून कर एक साधू अपने शिष्यों के साथ यहाँ पधारे थे, फिर कुछ दिनों बाद अपने शिष्यों को किराड़ू मे ही छोड़कर भ्रमण पर चले गये इसी बीच उनके शिष्य बीमार पड़ गये उनकी सेवा ठीक नहीं हुई बस एक कुम्हरिन् उनकी सेवा करती रही परन्तु साधू शिष्य एक एक करके मरते गए, जब साधू पुनः किराड़ू पहुँचे और उनको उनके शिष्यो की मौत की खबर मिली तो वो बहुत क्रोधित हुये, उन्होंने पूरे गाँव को श्राप दिया की जिस गाँव के लोगों का हिर्दय पत्थर के समान हो उन्हे पत्थर ही बन जाना चाहिये, उन्होंने उस कुम्हारिन को कहा की तुम ये गाँव छोड़कर चली जाओ और पिच्छे मुड़कर नहीं देखना वरना तुम भी पत्थर मे तब्दिल हो जाओगी, परन्तु कुम्हारिन जाते समय अपने घर को मुड़कर देख ली और पत्थर बन गई आज भी गाँव के बाहर सिंहणी गाँव मे उस कुम्हारीन की पाषाण प्रतिमा देखी जा सकती हैं, ये कहानी आसपास मे खूब प्रचलित है, जिससे 900 साल बाद भी आज तक वहाँ कोई और बस्ती नहीं बसीं।
किराड़ू गाँव के वीरान होने के पीछे एक और कहानी हैं, परन्तु ये कहानी वे लोग ही बनाये हैं, जो इस तरह के श्राप और साधू संतों को अंधविश्वाश समझते हैं, कहा जाता हैं कि 1200 वी सदी के आसपास मुग़लो किराड़ू पर बहुत हमले होते रहे जिससे डर के यहाँ के लोग पलायन कर गए थे जो आजतक वापस नहीं बसे, परन्तु मुग़लो के आक्रमण से 200 साल पहले ही यह गाँव वीरान हो चुका था।
किराड़ू इस जगह नाम किराड़ू राजपूत राजाओं के नाम पर पड़ा हैं, यहाँ कभी 5 अतिभब्य मंदिर हुआ करते थे, जिनकी तुलना खजुराहों के मंदिरों से की जाती थी, आजभी किराड़ू के मंदिरों को राजेस्थान का खजुराहों कहाँ जाता हैं, परन्तु अब 5 मन्दिरों मे से 2 ही ठीक ठाक अवस्था मे है बाकी खंडहर मे तब्दिल हो चुके हैं, विष्णु मंदिर और सोमनाथ मंदिर अब भी देखने योग्य हैं।
वैसे तो किराड़ू के मंदिरों किसने बनवाया इसका पूरा साक्ष्य नहीं हैं परन्तु यहाँ 3 शीला लेख मिले हैं जिससे यह पता चलता हैं की इसका निर्माण किसने कराया था।
पहला शिलालेख विक्रम संवत 1209 माघ वदी 14 तदनुसार 24 जनवरी 1153 का है जो कि गुजरात के चालुक्य कुमार पाल के समय का है। दूसरा विक्रम संवत 1218, ईस्वी 1161 का है जिसमें परमार सिंधुराज से लेकर सोमेश्वर तक की वंशावली दी गई है और तीसरा यह विक्रम संवत 1235 का है जो गुजरात के चालुक्य राजा भीमदेव द्वितीय के सामन्त चौहान मदन ब्रह्मदेव का है। इतिहासकारों का मत है कि किराडु के मंदिरों का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था तथा इनका निर्माण परमार वंश के राजा दुलशालराज और उनके वंशजों ने किया था।
कहाँ जाता हैं कि 2500 साल पहले जब बौध धर्म की उत्पति हुयी तब इस धर्म के सानिध्य मे आकर बहुत से लोग बैराग्य जीवन की और बढ़ने लगे थे, तब हमेशा से शिक्षा के केंद्र रहे मंदिरों और संतों गृहस्थ जीवन की शिक्षा प्रचार प्रसार और यौन शिक्षा का ज्ञान देने के लिये इन मंदिरों का निर्माण कराया गया था, परन्तु ये एक थ्योरी हैं असल मे इन मंदिरों के पिच्छे के निर्माण की कहानी कोइ नहीं जानता।
हालाँकि किराड़ू आज भी वीरान हैं परंतु साधू के श्राप की कहानी और मंदिरों के कलाकृति से आकर्षित हजारों सैलानी यहाँ आते हैं परन्तु शाम ढलने से पहले निकल जाते हैं।
किराड़ू के मंदिर खजुराहों के शैली पे बने वस्तुकला का अद्वितीय नमूना हैं, पर ये अनूठा धरोहर आज खंडहर मे तब्दिल होता जा रहा हैं क्योंकि इन धरोहरों पर न तो भारत सरकार की नज़र और न ही किसी संस्था की अब किराड़ू के मंदिरों का संरक्षण जरूरी हो गया हैं नहीं तो हमारी आने वाली पीढी इस अनूठे वस्तुकला को नहीं देख पाएगी, मेरी भारत सरकार से निवेदन हैं ऐसी धरोहरों को बचाये।
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