5 लाख 70 हजार साल पुरानी रहस्यमयी झील जिसका निर्मान उल्का पिंड के गिरने से हुआ था, इस झील का जिक्र पुराणो मे भी मिलता है, अकबर भी पिता था इस झील का पानी।
वैज्ञानिकों द्वारा यह अंदाज लगया जा रहा है कि लगभग 5 लाख 70 हजार साल पहले, एक 20 लाख टन का आकाशीय विशालकाय उल्का पिंड के गिरने से लोनार झील का निर्मान हुआ था ,परन्तु वह उल्का पिंड कहा चला गया हैं अभीतक इसका पता नहीं चल पाया हैं। ये झील दुनिया भर मे मौजूद 4 झिलो मे से एक है, जिसका निर्मान उल्का पिंड के गिरने से बने गढ्ढे यानि क्रेटर से हुआ था, इस झील का निर्मान hyper Velocity Impact से हुआ था।
कुछ वैज्ञानिको के अनुसार लोनार झील का निर्मान 56000 साल पहले उल्का पिंड के गिरने से हुअा था, परंतु हाल् ही मे हुये research से ये पता चला है की ये झील 5 लाख 70 हजार साल पुरानी है, जो एक उल्का पिंड के गिरने बना था, ऐसे गढ्ढो को क्रेटर कहते है, ये झील महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले मे स्थित है। नाशा से लेकर भारत की तमाम जाँच एजेंसियां इस रहसमयी झील पर जाँच कर चुकी हैं। लोनार झील का जिक्र बहुत सारी पुराणो ग्रंथों और दंत कथाओं मे मिलता।
लोनार झील का जिक्र स्कंद पुराण ,पद्म पुराण और इसके अलावा 16 वी स्ताब्दी मे लिखे आईन-ए-अकबरी में भी मिलता है। कहते हैं कि सुल्तान अकबर लोनार झील का पानी सूप में डालकर पीता था। हालांकि, इसे पहचान 1823 में मिली उस वक्त मिली, जब ब्रिटिश अधिकारी जे ई अलेक्जेंडर यहां पहुंचे थे।
एक कथा के अनुसार लोनासुर नाम का एक विशालकाय राक्षस था जिसका वध करने के लिए भगवान विष्णु एक विशालकाय रूप लिया और उसका वध कर दिया, लोनासुर का वध के दौरान उनके पैर अँगूठे रक्त लग गया था, उस रक्त को हटाने के भगवान विष्णु ने अँगूठे को धरती मे दबा का बाहर निकाला जिससे लोनार झील का निर्मान हुआ था।
लोनर झील हरे और निले रंग के पानी स्रोत है परन्तु इस झील का पानी 2019 के June मे आचानक से लाल हो गया, तब बहुत से लोग उत्सुकता वश झील देखने पहुँचे देखते ही देखते इस झील को देखने लाखो की भीड़ आने लगी, वैज्ञानिक भी इस रहस्य को समझने के लिए अपनी टीम के साथ पहुँचे, तब जाकर इस रहस्य से पर्दा उठा की महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में लोनार झील के पानी का रंग नमक से भरपूर cha हेलोचारिया ’रोगाणुओं की एक बड़ी उपस्थिति के कारण गुलाबी हो गया, पुणे स्थित एक संस्थान द्वारा की गई जांच हो गई है।
हेलोचारिया या हेलोफिलिक आर्किया एक बैक्टीरिया कल्चर है, जो गुलाबी रंग का रंजक पैदा करता है और नमक के साथ संतृप्त पानी में पाया जाता है, आगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ प्रशांत धाकफालकर ने पीटीआई को बताया।
लोनर झील मे मौजूद पानी ऊपरी भाग का औसत ब्यास है 1.2 किलोेमीटर और ऊपरी सतह का ब्यास है 1.8 किलोमीटर, बर्तमान मे ये झील जहाँ मौजूद है वहाँ कभी मौर्य वंश का शासन था, मोर्यो के अलावा सातवाहन, चलोक्य, राष्ट्र कोटु ने भी इस क्षेत्र मे शासन किया था, इसके अलावा मुग़लो यादवो और निजाम और अंग्रेजो के काल मे भी इस छेत्र काफी विकाश हुआ और ब्यापार को बढ़वा मिला,
झील के सतह पर बहुत सारे मंदिर आज भी मौजूद है, इनमे से कई मंदिरो को यादव मंदिरो के रूप मे जाने जाते है, और हेमादपंती मादिरों के रूप मे भी जाना जाता है, हेमाद मंदिरो का नाम हेमाद्रि पंति राम गया के नाम पर पडा है।
लोनार झील से जुड़ा एक हैरान कर देने वाला वाक्य के ग्रामीन बताते है की 2006 मे इस झील का पानी पूरी तरह सुख गया था जिससे इसके निचले सतह पर नमक की सफेद परत देखी गई थी, साथ अलग अलग तरह के खनिज के चमकते टुकड़े भी देखे गये थे परंतु जल्द ही वरसात शुरू हुई और फिर से झील भर गई।
झील के पास ही मौजूद एक कुवां के पानी आधा खारा और आधा मीठा है, प्रकृति ऐसा रहस्य शायद ही कहीं और मिलेगा जहाँ एक ही स्रोत से निकलने वाला पानी आधा मीठा और आधा खारा हो, इस कुवें के इसी विशेषता के कारण इसे सास बहू का कुवां भी कहा जाता हैं।
अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अलावा दुनियाँ की तमाम एजेंसी लोनार् झील पर शोध कर चुकी हैं, नासा के अनुसार बिसाल्टिक चट्टानों से बनी ये Lonar lake बिलकुल वैसी हैं जैसे मंगल ग्रह पर होती हैं, यहाँ पानी के रासायनिक गुण भी बिलकुल वहा से मिलते जुलते है।
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