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Rani ka kuwan (Buxar )

बक्सर तो वैसे पौराणिक कथाओ और इतिहास के पन्नो से कभी अछूता नहीं रहा है , इसकी ब्याख्या रामायण काल में भी मिलती है चाहे वो विश्वामित्र आश्रम हो या ताड़का नगरी  या पंचऋषियो का आश्रम ,बक्सर की  भूमि पौराणिक गाथाओं के लिये  के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है ।

अब इतिहास के पन्नो पर नज़र डालते है, यहाँ बक्सर का युद्ध 1764 में  बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला, तथा मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना और अंग्रेजी कंपनी के बीच लड़ा गया था ,लेकिन अंग्रेजों की चतुराई ने उन्हें जीत दिला दी और यही पास के चौसा में चौसा का युद्ध 1539 में  हुमायूँ और अफगानो के बीच हुआ था जिसमे हुमायूँ बुरी तरीके से हारा था ,

अब  इतिहास के दृष्टि से भी बक्सर से बक्सर की ब्याख्या हो गई , अब आगे बढ़ते है और असली मुद्दे पर आते है  बक्सर कभी राजवाडो के लिए चर्चित था ,उसी समकालीन वहाँ पर एक किला था परन्तु उस किले के निशान ही बस बचे है उसी किले के चलते वहाँ की ज़मीन को किला मैदान कहा जाता है , राजवाडो के समकालीन वहाँ एक कुवां भी था जिसे रानी का कुवां कहते है ये धरोहर प्रकृति की मार झेलते हुए भी आज तक खड़ा है ,ये कुवां नाथघाट के पास गंगा तट पर स्थित है ।

कब बनाया गया था रानी का कुआँ ?

 कहा जाता है की ये राजा भोज के समकालीन का है इसे 1111 ईस्वी के आस पास बनवाया गया था , इसके निर्माण की जानकारी कही उल्लेखित नही मिलती परंतु ये धरोहर अपने आप मे एक कलाकृति अजूबा है ।

रानी के कुवें का मैकेनिज्म हजारों साल पुराना है ।

इस कुवें को इस प्रकार से बनवाया गया था की अंदर स्नान करने वाले बाहर सब देख सकता था , परन्तु बहार से अंदर कुछ भी देखा नहीं जा सकता था , ये उस वक्त की शिल्पकारी का एक अद्भुत नमूना था। 

पहले गंगा उस कुवें से कोस भर की दुरी पर बहती थी परन्तु उस कुवें में गंगा के बीच से पानी ऑटोमैटिक तरीके से डेली चेंज हो जाता था , चुकी अब गंगा के कटाव के कारण वहाँ की मिट्टि हट गई है और कुवें का बेस पूरी तरह से खाली हो गया है फिर भी कुवां वहाँ आज भी खड़ा है , इस धरोहर पर अगर पुरातत्व विभाग नज़र डालें तो इस के अंदर के Mechanical System को जाना जा सकता है , इसके निर्माण की अद्भभुत कला को समझा जा सकता है , जो की आज प्रकृति की मार झेल रहा है ।

कैसे जाये।

रानी का कुवां बक्सर रेलवे स्टेशन से 2.5 किलोमीटर की दूरी पर चरितर वन मे नाथ घाट से बाय साइड मे 100 मीटर की दूरी पर आज़ भी शान से खडा है, वाह पर नाथ मंदिर यानी आदित्य नाथ अखड़ा मंदिर है, ये मंदिर शिव पार्वती जी का है, जहाँ पर राम सेतु के निर्माण मे उपयोग हुआ पानी पे तैरने वाला एक पत्थर रखा हुआ है, जिसका दर्शन शुभ माना जाता है। 

निष्कर्ष – इस पोस्ट को लिखने का मकसद सिर्फ और सिर्फ ये था की ज्यादे से ज्यादे लोगो को इस धरोहर के बारे में बताया जा सके, ताकि लोग जागृत हो और रानी के कुवें को गिराने से बचाया जा सके। 

धन्यवाद। 

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