Categories: General

Veer Babu kunwar singh / 7 बार अंग्रेजो को परास्त करने वाला क्रन्तिकारी .

बाबू कुवंर सिंह 80 साल का वह  क्रन्तिकारी जिसने अपना हाथ खुद से काटकर गंगा में समर्पित कर दिया। 

आजादी की लड़ाई की कहानिया हमारी आँखों को नम और दिल में जोश का की लहार पैदा कर देती है, भारत में आज़ादी के परवानो के लिए उम्र की कोई सीमा न थी , चाहे वो 12 साल के उड़ीसा के बाज़ी रावत हो या 14 साल के बंगाल के खुदीराम बॉस हो, सबने अपने वतन के लिए जान निवछवार कर दी।

जहाँ आज की दौर में 60 साल के बाद ही लोग रिटायर्ड होकर शांति सुकून और आराम की जिंदगी जीने लगते है , वहीँ 1857 की स्वतंत्रता की लड़ाई में एक वीर ऐसे भी थे ,जिन्होंने 80 साल की उम्र में अंग्रेजो से लोहा लिया और 7 बार उनको परास्त भी किया, इस स्वतंत्रता सेनानी का नाम बाबू कुंवर सिंह था। 

परिचय।

बाबू कुवंर सिंह का जन्म 23 अप्रैल 1717 में बिहार राज्य के भोजपुर जिले के जगदीशपुर कस्बे में हुआ था , बाबू कुंवर सिंह राजा भोज के वंसज माने जाते थे, उस वक़्त जगदीशपुर रियासत उज्जैनी राजपूतो का गढ़ था , उज्जैनी राजपूत परमार वंश के राजा बाबू शाहबज़ादे के घर बाबू कुवंर  सिंह का जन्म हुआ था , उनकी माता का नाम महारानी पंचरतन देवी था , जिस उम्र में बच्चे  खेलना कूदना पसंद करते थे ,उस उम्र में बाबू कुंवर सिंह तलवारबाज़ी और घुड़सवारी सीखने में अपना वक़्त बिताते थे , बाबू कुंवर सिंह मार्शल आर्ट और गुरिल्ला युद्ध के माहिर योद्धा थे ।

इतिहास में  गोरिला युद्ध के महा योद्धा सिर्फ 3 ही लोग थे , चन्द्र्गुप्य मौर्य , शिवजी महाराज और बाबू कुँअर सिंह , उनका विवाह बिहार के गया जिले के जमींदार राजा फ़तेह नारायण सिंह के पुत्री के साथ हुआ था, जो की एक मेवाड़ी सिसोदिया राजपूत थे ।

बाबू कुंवर सिंह का प्रेम प्रसंग।

बाबू कूवर सिंह नृत्य और कला के बहुत सौकिन ब्यक्ति थे , उनके जवानी के दिनों में उन्हें एक नृतकी धर्मन बीबी से मोहब्बत हो गई थी , मोहब्बत परवान चढ़ा , परन्तु इस मोहब्बत का भी वहीँ हश्र होना था जो अक्सर होता है , नर्तकी बाबू कुंवर सिंह समझने की कोशिश की हमारी मोहब्बत आपकी बर्बादी कारण बनेगी समाज में आपके नाम पर कीचड़ उछलेगा,इससे अच्छा रहेगा की मैं ये शहर छोड़ कर चली जाऊ , परन्तु बाबू कुंवर सिंह को ये नागवार था , तब उन्होंने ब्रमपुर के बाबा भोलेनाथ के मंदिर में ही धरमन बीबी से विवाह कर लिया, और धरमन बीबी को समाज में अपनी पत्नी का दर्ज़ा देकर सबका मुँह बंद कर दिया। 

बाबू कुंवर सिंह की शौर्य गाथा।

बाबू कुंवर सिंह का रियासत काफी बड़ी नहीं थी ,  डुमराव महाराज से लेकर वहाँ के सभी राजा और जमींदार अंग्रेजो को लगान देते थे , बाबू कुंवर सिंह पर भी दबाव बनाया जा रहा था लगान देने के लिए , और राज्य कोष खाली था , अंग्रेज जगदीशपुर रियासत को कब्जाने की फ़िराक में थे , तभी 1857 में क्रांति की लहार फैली, बाबू कुंवर सिंह कहा चुप रहने वाले थे ,24 जुलाई 1857 में बाबू कुंवर सिंह ने अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजा दिया , इसी बीच उन्होंने जगदीशपुर को अंग्रेजो से आज़ाद करवा लिया , और फिर आरा के अंगरेजी मुख्यालय पर हमला करके कब्ज़ा लिया। 

बाबू कुंवर सिंह सुरंग के रास्ते 26KM का सफर तय करके जगदीशपुर से आरा पहुंचे । 

परतु जीत का जश्न जल्द ही समाप्त होना वाला था , मेजर बिसेन्ट टायरे की सेना पुनः आरा को जित कर जगदीशपुर जितने चल दी , बाबू कुंवर सिंह की सेना डगलस की  बड़ी सेना और हथियारों के सामने हारने लगी तब बाबू कुंवर सिंह और उनके साथी सुरंग के सहारे जगदीशपुर से आरा  निकल गए ये ,सुरंग 26 किलोमीटर लम्बी थी , आज भी इसके निशान आरा  महाराजा कॉलेज में आपको मिल जायेंगे, अंग्रेज बाबू कुंवर सिंह को पकड़ने में फिर असफल रहे।  

परन्तु डगलस के सेना ने वहाँ भी उनका पीछा नहीं छोड़ा तब बाबू कुंवर सिंह को गंगा नदी के पास अंगरेजों से मुढभेड़ हुयी पर उनकी तदात ज्यादे थी इसलिए उन्हें गंगा नदी में नाव के सहारे भागना पड़ा।  

बाबू कुंवर सिंह ने आज़मगढ़ को जीत लिया।

गंगा के रास्ते बलिया होते हुए बाबू कुंवर सिंह लखनऊ पहुंचे जहाँ वे अपने मित्रो और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अंग्रेजो से पुनः लोहा लेने के लिए तैयार हो गये और मार्च 1858 में आज़मगढ़ को आज़ाद करा लिया फिर वे तात्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई के साथ भी युद्ध लड़े उनकी गोरिला युद्ध निति से सब प्रभवित हुए थे और क्रांतिकारियों में सबसे बुजुर्ग योद्धा भी बाबू कुंवर सिंह ही थे ,इसलिए उनकी बात सब मानते थे ,रानी लक्ष्मीबाई बाई और तात्या टोपे के साथ उन्होंने अग्रेजो को 4 बार हराया था उनकी अचानक से आक्रमण करने वाली निति ने उनको 7 बार विजयी बनाया था, बाबू कुंवर सिंह की युद्ध निति बड़ी ही कौशल थी एक बार तो बाबू कुंवर सिंह युद्ध से पीछे हटने लगे ,अंग्रेजो को लगा की कुंवर सिंह हार रहे है।, अंग्रेजी सेना अस्वस्थ हो गई की वे जीत चुके है सभी जीत का जश्न मना रहे थे तभी बाबू कुंवर सिंह ने अचानक से आक्रमण करके उनको परास्त कर दिये, उनको सम्हालने का मौंका ही नहीं देते थे, हर युद्ध मे नई रणनीति अपनाते थे ।

हिंदी साहित्य की कवित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी कविता झांसी की रानी में बाबू कुंवर सिंह का स्थान दिया है। उसके कुछ अंश इस प्रकार है ।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुंवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बाबू कुंवर सिंह ने हाथ काटकर गंगा में समर्पित कर दिया।

बाबू कुंवर सिंह की टुकड़ी बहुत छोटी थी परन्तु वे अपने युद्ध कौशल के बल पर जीत जाते थे ,परन्तु अंग्रेज दोबारा बड़ी तादात के साथ आते थे और बाबू कुंवर सिंह को स्थान छोड़ना पड़ता परन्तु वे कभी बाबू कुंवर सिंह को जिन्दा न पकड़ पाए , आज़मगढ़ की जीत के बाद बाबू कुंवर सिंह 20 अप्रैल 1858 को गाज़ीपुर के मनोहर गॉव में थे जहाँ अंगरेजो को बाबू कुंवर सिंह की खबर मिल गई ,  22 अप्रैल 1858 को मनोहर गाँव में बाबू कुंवर सिंह ने एक और युद्ध लड़ा जहाँ एक गोली उनके दाहिने हाथ लग गई ,परन्तु बाबू कुंवर सिंह की तलवार नहीं रुकी वे अंत तक लड़ते रहे , परंतु अंग्रेजी फ़ौज की तदात ज्यादे वे जानते थे ये अंतिम युद्ध नही है , इसलिए वे अपने साथियो के साथ नदी मार्ग से जगदीशपुर अपनी मातृ भूमि के लिए रवाना  हो गये , और गंगा के बीच मे ही उन्होंने अपने दाहिने हाथ को खुद से काटकर गंगा में समर्पित कर दिया ।

इस घटना का जिक्र करते हुए कवी मनोरंजन प्रसाद जी ने अपनी कविता में लिखा है 

कविता के कुछ अंश। इस प्रकार है। 

दुश्मन तट पर पहुँच गए जब कुंवर सिंह करते थे पार।
गोली आकर लगी बाँह में दायाँ हाथ हुआ बेकार।
हुई अपावन बाहु जान बस, काट दिया लेकर तलवार।
ले गंगे, यह हाथ आज तुझको ही देता हूँ उपहार॥
वीर मात का वही जाह्नवी को मानो नजराना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

बाबू कुंवर सिंह ने एक हाथ से लड़कर अपनी मातृ भूमि को आज़ाद कराया।

जब जगदीशपुर पहुंचे तबतक गोली का जहर उनके शरीर में फ़ैलाने लगा था , फिर भी वे रुके नहीं और एक हाथ से ही अँगरेजी फौज के साथ युद्ध लड़ा और जगदीशपुर को आज़ाद करा लिया , वे अपना अंतिम युद्ध भी बड़े शौर्य से लडे और अंग्रेजो को घुटना टेकना पड़ा , जगदीशपुर फिर से बाबू कुंवर सिंह का हो गया , जब जगदीशपुर आज़ादी का जश्न मना रहा था , तब इधर बाबू कुंवर सिंह हालत बिगड़ती जा रही थी जगदीशपुर की आज़ादी के 3 दिन बाद 26 अप्रैल 1858 को  वीर सपूत बाबू कुंवर सिंह  वीरगति को प्राप्त हुए , इस तरह बाबू कुंवर सिंह आज़ाद ही मरे थे।  हमें गर्व ऐसे सपूतों पे जिन्होंने भारत माता की लाज रखी हो, मेजर बिसेन्ट ने उनके मरणोपरांत कहा था की अच्छा था की बाबू कुंवर सिंह 80 वर्ष के थे अगर 18 वर्ष के होते तो बिहार 1857 में ही आज़ाद हो गया होता। 

Recent Posts

Rani Kamalapati- भोपाल की महारानी जिसके नाम पर भोपाल के एक रेलवे स्टेशन का नाम हबीबगंज से रानी कमलापति रखा गया।

भोपाल मध्यप्रदेश के के एक रेलवे स्टेशन का नाम हाल ही बदलकर हबीबगंज से रानी…

1 year ago

Why did the mathematician Ramanujan not have any close friends/ आख़िर क्यों महान गणितज्ञ रमानुजम् के कोई करीबी दोस्त नहीं था।

वैसे तो महान गणितज्ञ रमानुजम् को कौन नहीं जनता जिन्हिने infinite ∞ यानी अनंत की खोज…

1 year ago

Rishi Kanad was the father of atomic theory and propounded the theory of gravitation and motion before Newton in Hindi.

महर्षि कनाद परमाणु सिद्धांत के जनक माने जाते हैं। महर्षि कणाद को परमाणु सिद्धांत का…

1 year ago

Lohagarh Fort History in hindi /लौहगढ़ का किला-भारत का एक मात्र अजेय दुर्ग।

लौहगढ़ का किला-भारत का एक मात्र  अजेय दुर्ग, मिट्टी का यह किला तोपों पर पड़ा…

1 year ago

Uda Devi Pasi वो वीरांगना जिसने 36 अंग्रेजों को अकेले मारा/16 नवंबर उदा देवी पासी बलिदान दिवस।

16 नवंबर उदा देवी पासी बलिदान दिवस।  वो वीरांगना जिसने अकेले ही 36 अंग्रेजों को…

1 year ago

Biography Of South Film Actor Puneet Rajkumar in Hindi/पुनीत राजकुमा जीवन परिचय।

29 October 2021 को साउथ फिल्म जगत के महान एक्टर पुनीत राजकुमार (Appu) के देहांत…

2 years ago