भगवान कृष्ण के मृत्यू के रहस्य की सम्पूर्ण कहानी।
भगवान कृष्ण के बारे में कौन नहीँ जानता परंतु उनके मृत्यु के रहस्य को बहुत कम लोग ही जानते होंगे , आज हम भगवान कृष्ण के मृत्यु से संबंधित सभी रहस्यों को जानेंगे चाहें वो पुराणों से हो या लोक कथाओं या दंत कथाओ से हो ।
महाभारत युद्ध के उपरांत भगवान कृष्ण माता गान्धारी से मिलने गए तब माता गांधारी ने कृष्ण को आशीर्वाद के साथ श्राप भी दे डाला माता गान्धारी ने भगवान कृष्ण से कहा गिरधर तुम चाहते तो इस युद्ध को रोक सकते थे परंतु तुम ये जानते हुये भी भरत वंश का नाश कर दिया ,मैं तुम्हें श्राप देती हूँ कि जिस तरह तुमने भरत वंश नाश होने दिया, वैसे ही तुम्हारे यदुवंश का नाश हो जायेगा ।
माता गान्धारी के श्राप के कारण यदुवंश का नाश हुआ ।
भगवान श्रीकृष्ण को आभास हो गया था कि अब यदुवंश को सर्वनाश होगा इसलिए उन्होंने पहले ही बलराम जी को कही भेज दिया ,
कृष्ण भगवान द्वारका लौटकर आये और सभी यदुवंशियों को लेकर प्रभास छेत्र आ गए ,ये श्राप का ही असर ही था कि कृतवर्मा और भगवान कृष्ण के मित्र सात्यिक का महाभारत युद्ध को लेकर बहस सुरू ही गई और बहस इतनी बढ़ गई कि सात्यिक ने कृतवर्मा का सर वही काट दिया ,श्राप ने अपना असर दिखाया और सभी यदुवंशी वही लड़ने लगे और जब तक भगवान कृष्ण वहाँ पहुँचे तबतक सारा यदुवंश समाप्त हो गया था ।
भगवान जब प्रभास क्षेत्र में पहुचे तब तक सारा यदुवंश खत्म हो गया था उनके पुत्र प्रदुम्न ,मित्र सात्यिक और कृतवर्मा समेत सभी यदुवंशी आपस मे ही युद्ध कर के मारे गए थे ,भगवान कृष्ण ने उनमे से 2 घायल यदुवंशीयों को बचाया ,ये दोनों ही आगे चलकर यदुवंश के वंश को बढ़ाया ,ये दो लोग बब्रु और दारुक थे इन्ही के वंशज आज के यदुवंशी है ।
भगवान कृष्ण यदुवंश के खात्मे की ब्यथा में द्वारिका के प्रभास क्षेत्र में एक पेड़ के नीचे बैठे बिश्राम कर रहे थे । तभी एक जरा नामक बहेलिया आया और उनके पैरों में चमक रही मणि को देखकर उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि कोई हिरण की आंख चमक रही है और उसने पैरो पर बाण चला दी और भगवान कृष्ण ने इसी का बहाना बनाकर देह त्याग दिया ।
भगवान कृष्ण के मृत्यु का रहस्य ।
भगवान कृष्ण के मृत्यु के रहस्य को जानने के लिए हमें अलग दंत कथाओं और किवंदितियो को समझना पड़ेगा ।
कुछ दंत कथाओं के अनुसार एकलब्य ही जरायु था , रामायण के अनुसार जब द्रोणाचार्य ने एकलब्य को शिक्षा देने से इनकार कर दिया तब उसने द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाकर उनके सामने ही अपना अभ्यास सुरु कर दिया ,एक दिन गुरु द्रोणाचार्य जंगल से जा रहे थे तो उन्होंने सपनी प्रतिमा देखी और हैरान हो गए तभी देखा कि एकलव्य वही मूर्ति के सामने गुरु द्रोण की पूजा कर रहा है, वही नजदीक में एक कुत्ता भौंक रहा था एकलब्य ने क्रोध में आकर एक साथ कई बाण चला दिए जो सीधा कुत्ते के मुँह में लगा , परन्तु उस कुत्ते के मुख में किसी प्रकार की हानि नहीँ हुई, बस बाणों से उसका मुख भर गया था , ये देख द्रोणाचार्य एकलब्य के पास गए और उनके गुरु का नाम पूछा तब एकलब्य ने उनकी मूर्ति दिखाई और कहा की आप ही मेरे गुरु है मैंने आपके मूर्ति के समक्ष ही अपना अभ्यास करके ये विद्या सीखी है , तब गुरु द्रोणाचार्य को लगा की ये अगर किसी युद्ध में गया, तो मेरे शिष्यों और मेरी हानि होगी ,इसीलिए गुरुद्रोण ने एकलब्य से गुरूदखिणा मांगी और एकलब्य तैयार हो गए, गुरु द्रोण ने एकलब्य से गुरूदखिणा में एकलब्य का दाहिना हाथ का अंगूठा माँग लिया तब एकलब्य सहस्व तैयार होकर अपना अंगूठा स्वंम काटकर दे दिया ,फिर उन्होंने एकलब्य से एक वचन लिया की तुम कभी किसी महायुद्ध में भाग नहीं लोगे ,तब एकलब्य ने गुरु द्रोण से कहा की मेरी इस विद्या का कोई महत्व नहीं रह जायेगा अगर मैं किसी युद्ध का हिस्सा नही बन पाया तो , तब द्रोणाचार्य ने एकलब्य से कहा की तुम्हारी ख्याति अमर रहेगी वत्स ,मैं तुम्हे ये आशीर्वाद देता हु, तब एकलब्य ने उन्हें किसी महायुद्ध में भाग न लेने का वचन दे दिया।
जब महाभारत का युद्ध सुरु हुआ तब एकलब्य उस युद्ध में गए थे और वे अर्जुन के बाण चलने से पहले ही उनके शत्रु पर बाण चलाकर मार देते, हर बार ऐसा ही हो रहा था तब अर्जुन क्रोध में आकर एकलब्य को ही मारने चले , भगवान कृष्ण ने अर्जुन को रोका और एकलब्य को उसके गुरु को दिए वचन को याद दिलाया तब एकलब्य स्वम् वहाँ से चले गए।
कहा जाता है की फिर एकलब्य एकांत में जाकर जंगल में रहने लगे तथा जंगली लोग उन्हें जरायुबाबा नाम से जानने लगे और जब यदुबंश का नाश हो गया और भगवन कृष्ण इसी ब्यथा में पेड़ के निचे मायुश बैठे हुए थे तभी जरायु यानी एकलब्य वहाँ से गुजरे और भगवान कृष्ण के पैरों लगी मणि उनको हिरन के आंख सी प्रतीत हुयी और एकलब्य ने उसपे बाण चला दी जिससे उनकी मौत हो गयी।
महाभारत के बृतान्त के अनुसार भीम के पौत्र और घटोचक के पुत्र बर्बरीक बहुत ही शक्तिशाली था , उसने एक बाण से महाभारत युद्ध को समाप्त करने बात सब के सामने कह डाली , तब किसी को उसके बात का विश्वाश नहीं हुआ तब बर्बरीक ने उनको विश्वाश दिलाने के लिए कहा की वो इस पेड़ के सभी पत्तों को एकसाथ एक ही बाण से भेद सकता है तभी भगवान कृष्ण से उस पेड़ के एक पत्ते को अपने पैरों के तले में दबा लिया और फिर बर्बरीक ने बाण चलाया और सभी पत्तों को देखा गया तो सभी पत्तों में छेद था तभी भगवन कृष्ण मुस्कुराये और बोले एक पत्ते में अब भी छेद नहीं हुआ , बर्बरीक जोर देकर कहा ऐसा नहीं हो सकता , तब भगवान कृष्ण ने अपने पैरोंतले दबे उंस पत्ते को उठाया और सब को दिखने लगे , परन्तु उसमे भी छेद था और बर्बरीक का बाण उनके तलवे को भेदता हुआ पत्ता को भी भेद दिया था , ये देख भगवन कृष्ण भी हैरान हो गए , उनका लगा की ये एक ही बाण में सभी का वध कर देगा और तो और बर्बरीक कमजोर पक्ष से ही युद्व लड़ेगा ऐसा वचन अपने गुरु को दे चुका था अगर इसका युद्ध के दौरान कभी भी आभास हुआ कि कौरव कमजोर है तो वो कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ने लगता ऐसे में पाण्डवो का हराना सुनिश्चित हो जाता , तब कृष्ण भगवान ने एक चाल चली और अर्जुन से कहा कि अर्जुन तुमको इस युद्ध मे विजयी होने के लिए अपनी बलि देनी होगी नही तो तुम्हारे भाइयो में से किसी को अपनी बलि देनी होगी , इसपर बर्बरीक ने भगवान कृष्ण को रोका ,अगर कुसी अपने को ही बलि देना है तो मैं भी पाण्डु का ही वंशज हूँ मेरी बलि दी जायेगी मेरे होते हुवे मेरे पितामहः को बलि देनी पड़े तो मेरा जीवन बेकार है , और स्वम् बर्बरीक ने अपना सर काटकर कृष्ण को दे दिया।
कुछ दन्त कथाओ के अनुसार जरायु ही रामायण काल का बानर राज सुग्रीव का भाई बाली था , जब जरायु ने बाण चलाकर भगवन कृष्ण के पास गए तो उन्हें बहुत ग्लानि हुयी तब भगवन कृष्ण ने जरायु से कहा की इस तरह ग्लानि न करो तुम त्रेता युग के बाली हो और जैसे मैंने तुम्हे राम बनकर पेड़ की आड़ लेकर मारा था वैसे ही तुमने मुझे आज मारा है।
कुछ दन्त कथाओ के अनुसार जरायु को बाली के पुत्र अंगद का जन्म माना जाता है , कहा जाता है की जब भगवन राम बनवास खत्म करके अयोध्या आये तो सबको भगवन राम के द्वारा कुछ न कुछ भेंट दिया गया , और जब हनुमान जी बारी आये तो वे कुछ नहीं मांगे तब सीता जी ने उन्हें अपने गले की मोतियों की माला भेंट स्वरुप दे दी परन्तु हनुमान जी उन मोतियों की माला को अपने दांतो से तोड़कर देखने लगे तब सीता जी क्रोध आया उन्होंने हनुमान जी से इसका कारण पुछने लगी तभी हनुमाजी बोले माता मैं इस मोतियो को तोड़कर ये देख रहा था की इसमें मेरे प्रभु राम है की छवि है या नहीं और जिस वस्तु में राम नहीं उसका मेरे लिए क्या मोल मेरे तो सीने में बस राम ही राम है मुझे राम नाम के अलावा और कुछ नहीं चाहिए , तभी दरबारियों में से किसी ने कहा की अगर आप के सीने में राम है तो हमें भी दिखाइए तभी हनुमान जी ने अपना सीना फाड़कर सब को राम के दर्शन अपने सीने में करा दिए।
और जब बारी अंगद की आये तो वे मायुश थे उन्होंने बस इतना ही कहा की प्रभु मैंने तो पिता के वचन का मान रखा परन्तु पुत्रधर्म नहीं निभाया, इसके आगे अंगद ने कुछ नहीं कहा परन्तु प्रभु श्रीराम तो अन्तर्यामी थे वे अंगद की बात समझ गए की पिता का हत्या का प्रतिशोध लेना तो पुत्र धर्म है जो अंगद ने नहीं निभाया। और प्रभु श्रीराम ने अंगद से कहा की तुम ये ऋण मेरे अगले अवतार में जरूर पूरा करोगे, फिर अंगद का जन्म जरायु के रूप में हुआ और भगवन कृष्ण के मौत कारण भी जरायु ही बना।
जब भगवन कृष्ण की धरती पर लीला अवधी समाप्त हो गयी तो वे जरायु के बाण को कारण बनाकर अपना देह त्याग दिए , फिर पांडवो को जब इसका पता चला तो वे उनका दाह संस्कार करने पहुंचे उनके शरीर को जब जलाया गया तब उनका शरीर तो जल गया, परन्तु उनका हृदय (दिल ) की आग लगातार जल रही थी फिर पांडवों ने उसे ऐसे ही नदी में बहा दिया। फिर वही दिल लठ में परिवर्तित हो गया और राजा इन्द्रद्युम्न को मिला जिसे उन्होंने मंदिर निर्माण करके मूर्ति के अंदर रखवाया।
कुछ कहानियो के अनुसार राजा को सपने में इस लठ की जानकारी मिली फिर उन्होंने इस लठ को लेकर मंदिर निर्माण के लिए कारीगर की खोज सुरु की, एक कारीगर मिला जो मूर्ति का निर्माण के लिए तैयार हुआ लेकिन उसकी शर्त थी की जबतक मूर्ति निर्माण न हो जाए कोई भी मंदिर के अंदर नहीं प्रवेश नही करेगा, कुछ मतों के अनुसार वे स्वंम विश्कर्मा भगवान थे , फिर मूर्ति का निर्माण सुरु हुआ 6 महीने हो गए न तो मंदिर दरवाजा खुला न ही मंदिर से वो कारीगर निकला , फिर राजा को लगा की कारीगर की कही मृत्यु न हो गई हो, तो उन्होंने इस शंका को दूर करने के लिए मंदिर का दरवाजा खोलवाया तो कारीगर वहाँ से क्रोध में चला गया , और भगवान जगन्ननाथ की मूर्ति अधूरी रह गई , राजा चिंतित हुए फिर उन्हें रात में एक और सपना आया की मूर्ति को वैसे ही स्थापित कर दे और फिर मूर्ति को वैसे ही स्थापित कर दिया गया।
कहा जाता है की हर 12 वर्ष पर द्वारिका पूरी के मूर्ति को बदला जाता है और नई मूर्ति को स्थापित किया जाता है परन्तु मूर्ति के अंदर रखा लठ जिसे ब्रम्ह पदार्थ कहते है उसे नहीं बदला जाता है , और उस ब्रम्ह पदार्थ को आजतक किसी ने नहीं देखा है कहा जाता है की जो कोई ब्रम्ह पदार्थ को देख लेगा उसकी मृत्यु वही हो जाएगी , इसिलए हर 12 साल पर जब मूर्ति का निर्माण हो जाता है तब पुजारी आँखों पर पट्टी और हाथ में दस्ताना पहनकर उस ब्रम्ह पदार्थ को बदलता है , उस दिन पुरे इलाके की विजली को सरकार स्वम् बंद करा देती है मंदिर गेट भी बंद हो जाता है और मंदिर के बहार CRPF के जवानो का कड़ी निगरानी रहती है।जो पुजारी इस उस ब्रम्ह पदार्थ को बदलते है उनके अनुसार ब्रम्ह पदार्थ को जब बदला जाता है तो उसे हाथों से ही बदला जाता है और जब हाथ में लेते है तो उसमे हलचल होती रहती है उनके अनुसार ये एक जिन्दा खरगोश के सामान प्रतीत होता है दस्ताने पहनने के चलते उसकी पूर्ण अनुभूति नहीं होती है , परन्तु उसकी हलचल के अहसास होता है।
निष्कर्ष:- ऊपर लिखे लेख की जानकारी पुराणों ग्रंथो और लोक कथाओं से ली गईं है , अग़र आपको इसमे कोई त्रुटि लगे तो कृपा कर कमेन्ट बॉक्स में जरूर बतावें।धन्यवाद ।
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