अभीतक के सबसे ताकतवर असुर कली पुरुष और भगवान विष्णु के 10वे अवतार कल्कि के जन्म के रहस्य की कहानी।
वेदो के अनुसार इस सृष्टि की रचना ब्रम्हा जी ने किया है , और इसके पालनहार विष्णु जी है , और जब ये system corrupt हो जाता है , तब भोलेनाथ भगवन शिव शंकर इस सृस्टि का विनाश कर देते है , परन्तु हम रचना और विनाश के बिच इसके execution की बात करते है ,इस system यानि इस सृष्टि को चलाये रखने के लिए भगवान विष्णु का अवतार होते रहता है।
अभी तक इनमे से भगवान विष्णु के 9 अवतार इस धरती पर हो चुके है , परन्तु 10वां अवतार अभी तक नहीं हुआ है , क्योंकि 10वां अवतार कलयुग के अंत में जब सृष्टि में पाप अपने चरम पर होगा तब भगवान विष्णु का अबतक का सबसे शक्तिशाली अवतार का जन्म होगा।
श्रीमदभगवत गीता में कल्कि अवतार की भविष्यवाणी पहले ही कर दी गई है , भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है की जब जब धरती पर पाप होता है तब तब मैं जन्म लेता हूँ , गीता का वो श्लोक जिसमे भगवान कृष्ण ने अपने जन्म के रहस्य को स्वयं खोला है।
श्लोक
यादा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥
भावार्थ।
मै प्रकट होता हूं, मैं आता हूं, जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं, जब जब अधर्म बढता है तब तब मैं आता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं।
श्रीमद भगवत गीता के 12वे स्कन्द में लिखा है की भगवान बिष्णु के 10वे अवतार कल्कि का जन्म कलयुग के अंत में और सतयुग के संधि काल में होगा , जैसा की हम सभी जानते है , भगवान विष्णु के अवतार हमेशा से हर युग के अंत में होता है ,जैसे रामा अवतार त्रेतयुग के अंत में हुआ था , और जैसे ही रामा अवतार की सदगति होती है वैसे ही द्वापर युग की शुरुवात होती है , वैसे ही द्वापर युग के अंत में कृष्णा अवतार हुआ और कृष्णा के सदगति होते ही कलयुग प्रारम्भ होता है , वैसे ही कलयुग के अंत में कल्कि अवतार होगा और अवतार का कार्य समाप्ति के बाद सतयुग का पुनः आगमन हो जायेगा।
कल्कि अवतार के जन्म का रहस्य हमारे ग्रंथ के इस श्लोक में मिलता है।
श्लोक
सम्भल ग्राम मुखस्य ब्रामणस्यमहात्मनः
भवनेविष्णुयशस: प्रादुर्भाविष्यति।।
अर्थार्त संभल ग्राम में विष्णुयश नामक ब्राम्हण के घर में भगवान कल्कि का जन्म होगा। अब आगे की भविष्यबाणी के बारे में जानते है भगवान विष्णु के कल्कि अवतार का जन्म मुरादाबाद के सम्भल ग्राम में होगा इनकी माता का नाम सुमति होगा ,ये देवदत्त नामक सफेद घोड़े की सवारी करेंगे, इनके हाथ में 2 तलवारे होंगीं , ये अवतार निष्कलंक अवतार होगा कहा जाता है की भगवान राम में 12 गुण थे, कृष्ण में 16 गुण थे ,परन्तु कल्कि अवतार में कुल 64 गुण होंगे , ये अवतार इंसान को पुनः प्रकृति से जोड़ेगा, कहा जाता है की कलयुग के अंत में जब सारी नदिया सुख जाएँगी , इंसान का इंसान से विश्वाश खत्म हो जायेगा एक स्त्री बहुत सारे मर्दो के साथ रहेंगी, हर जगह पाप को बोलबाला होगा , तब इस धरती पर कल्कि अवतार लेकर भगवान विष्णु आएंगे और पुनः धर्म की स्थापना करेंगे।
7 दिब्या पौराणिक पुरुष जो अबतक जिन्दा है वे कल्कि अवतार में उनके साथ होंगे।
7 दिब्या पुरुष
कहा जाता है की ये 7 दिब्या पुरुष आज भी कल्कि अवतार की प्रतीक्षा कर रहे है , जिसमे परशुराम जी भगवान कल्कि के गुरु होंगे , बाकि महापुरुष भगवान कल्कि के साथ राक्षस कली पुरुष के खिलाफ युद्ध लड़ेंगे।
कलीपुरुष के जन्म का रहस्य।
कली पुरुष के जन्म के रहस्य को जानने के लिए हमें इस सृष्टि के रचना स्रोत के समय में जाना होगा यानि सतयुग में ,एक बार ऋषि दुर्बासा इंद्र देवता से मिलाने स्वर्ग लोक गए हुए थे, परन्तु इंद्र देव वहां नहीं थे वे किसी राक्षस का वध करके अभी स्वर्ग लोक आये हुवे थे ,तब दुर्बासा ऋषि ने उनके स्वागत के लिए फूलों की माला दिए , चुकी इंद्र देव अभी जीत के धुन में मग्न थे वे मग्नता में वो फूलों की माला अपने गज यानि हाथी को पहना दिए और जब पुनः सभा सुरु हुई तो दुर्बासा ऋषि उनसे मिलाने आये ,तो देखा की उनके फूलों की माला हाथी के पैरों में पड़ा था , यह देख दुर्बासा ऋषि को क्रोध आ गया और उन्होंने श्राप दे डाला की जिस ऐश्वर्य में तुमने मेरे उपहार का अपमान किया वो ऐश्वर्य तुम से छीन जायेगा। उसके बाद धन और मान की हानि होने लगी, देवता कमजोर होने लगे , तब सभी भगवान विष्णु के पास पहुंचे , भगवान विष्णु ने उन्हें समुन्द्र मंथन के लिए कहा और बोला की आप लोगों पुनः पहले जैसा होने के लिए छीर सागर के अमृत की आवश्यकता पड़ेगी, चुकी देवता अभी कमजोर थे इसलिए इसलिये इंद्र देव ने असुरो के राजा राजा बलि से समन्द्र मंथन के लिये मदद मांगी , पहले तो राजा बलि ने देवताओं को मना कर दिया वे जानते थे कि देवता असुरों के साथ छल करेंगे , परंतु शुक्रचार्य के कहने पर राजा बलि इस शर्त पर तैयार हुए की जो भी समुन्द्र मंथन में निकलेगा उसका बटवारा होगा , तब मंदराचल पर्वत को गरुड़ देव ने अपने चोंच में उठाकर छिर सागर में रखा , और सर्प राज बासुकी को उस पर्वत में लपेट कर रस्से के रूप लिया गया, राक्षस गण बासुकी नाग के मुख की ओर और देवता पूंछ की ओर लगे थे , परन्तु मंथन हो नहीं पा रहा था , क्योंकि मंदराचल पर्वत का आधार घूम नहीं रहा था , तब भगवान विष्णु ने कच्छ यानि कछुवे का अवतार लेकर मंदराचल पर्वत को अपने पीठ पर रखा इस प्रकार मंथन की शुरुवात हुई , उसमे से बहुत सारे कीमती आभूषण के साथ पहले हलाहल नामक तेज विष निकला भगवान विष्णु को इस विष के बारे में पहले से ही पता था ,वे देवताओं को इस बारे पहले इसलिए नहीं बताये , क्योंकि वे जानते थे अगर उन्हें बता दिया तो वे विष के कारण देवता इस मंथन को नहीं करते , इसलिए उन्हें सिर्फ अमृत के बारे में बताया , अब चुकी हलाहल विष निकल गया था और सभी इसके वेग से मूर्छित होने लगे परन्तु शर्त अनुसार इसे आधा देवता तथा आधा असुरो को पीना था, परन्तु दोनों में हलाहल विष के इस तेज को सहने की शक्ति नहीं थी , फिर भगवान भोलेनाथ ने भगवान विष्णु के कहने पर विषपान किया परन्तु इस विष के तेज से भोले नाथ भी जलन से प्रभावित होने लगे, तब शक्ति रूपी देवी पार्वती ने उस विष को अपने हाथो से भोलेनाथ के गले में ही रोक दिया, इस विष के प्रभाव से भोले नाथ का कंठ नीला पड़ गया तब से भोलेनाथ का नाम निकंठ पड़ गया , परन्तु इस क्रिया में विष की एक बून्द राक्षस कली में मुख में जा गिरा और कली का शरीर तो खत्म हो गया , और फिर आगे जब मंथन हुआ तो उसमे से कामधेनु गाय निकली जिसे ऋषियों ने रखा , उचेश्व अश्व को राजा बलि ने ग्रहण किया , ऐरावत हाथी को देवताओ के राजा इंद्रा ने ग्रहण किया ,कौस्तुब मणि और शंख को भगवान विष्णु जी ने धारण किया , इसके बाद निकली संजीवनी बूटी इसे पृथ्वी पर एक सुरक्षित स्थान पर स्थापित किया गया, ये वही संजीवनी बूटी है जिसे रामायण काल में लक्षण को दिया गया था , जब उनको मेघनाथ की बरछी लगी थी।
और इसके बाद धन सम्पदा लेकर लक्ष्मी जी निकली लक्ष्मी, सभी देवता ऋषि मुनि एवं राक्षस लक्ष्मी देवी को रखना चाहते थे परंतु लक्ष्मी जी ने खुद विष्णु जी को ग्रहण कर लिया , चन्द्रमा निकले तो भोलेनाथ ने ग्रहण किया , इसके बाद परीजाद बृक्ष और कल्प बृक्ष निकला जिसे स्वर्ग में स्थापित किया गया , फिर निकली रम्भा जिसे स्वर्ग अप्सरा बना कर स्वर्ग में रखा गया , इसके बाद निकली वारुणी देवी यानि सूरा देवी यानि Goddess of Alcohol जिन्हे असुरो ने ले लिया ,और अंत में भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले , इसी अमृत की छिना छपत में कुछ बुँदे समंदर जा गिरी, जो उज्जैन नासिक और अलाहाबाद में गिरा था और कहा जाता है की हर 12 वर्ष पर फिर से वो अमृत प्रकट होता है , उस वक्त स्नान करने से रोग दोष दूर हो जाते है , और इसी अमृत की कुछ बुँदे कली पुरुष को भी मिल गई, जिससे वो फिर से जीवित हो उठा ,परन्तु वो भौतिक रूप में न आ सका , अमृत को बटवारे के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप ले लिया और सारा अमृत देवताओ को पीला दिया परन्तु राहु और केतु दो राक्षस देवताओ का रूप लेकर अमृत पी लिए थे ,तो भगवान विष्णु ने उनका सर काट दिया ,परन्तु अमृत पिने के चलते वे अमर हो चुके थे इसलिए राहु और केतु अब भी पिंड यानि गृह रूप में जीवित है।
कली पुरुष अभी भौतिक रूप नहीं आया है परन्तु वो अपनी शक्तियों से इंसान पर काबू पा सकता है और कलयुग के अंत में वो भौतिक रूप में भी आ जायेगा , तब वो पताल लोक से आसुरी शक्ति को आज़ाद करके इंसानो पे राज करेगा, तब भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा जो 64 गुणों से लिप्त, माहिर योद्धा होंगे जो अबतक के सबसे शक्तिशाली राक्षस कली पुरुष से लड़ेंगे और इंसानो को उसके प्रभाव से मुक्त करेंगे , परन्तु इस युद्ध में कली पुरुष के तरफ से भी इंसान लड़ेंगे क्योंकि तबतक धर्म पूरी तरह नस्ट हो जाएगा इंसान भगवान को पहचान नहीं पायेंगें , परन्तु अंत में सब ठीक हो जायेगा और सतयुग का प्राम्भ होगा।
धन्यवाद ।
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