Categories: General

History of Vikramshila University Bhagalpur /विक्रम शिला विश्विद्यालय का गौरवशाली इतिहास।

विक्रम शिला विश्वविद्यालय का गौरवशाली  इतिहास। 

हमारे देश में आज बहुत सारे शिक्षा के केंद्र (यूनिवर्सिटी ) है जैसे IIT , JNU AMU ,IIM इत्यादि परन्तु आज से हजारो साल पहले भी 3 भब्या विश्विद्यालय थे ,जिन्हे शिक्षा का केंद्र माना जाता था जहाँ भारत से ही नहीं भारत के बाहर से भी लोग आते थे पढ़ने के लिए , इन विश्वविद्यालयों में मेरिट के आधार पर सलेक्शन होता था , यहाँ दुनिया भर की भाषाओ की पाण्डुलिपि होती थी , यहाँ जापान चीन ताइवान तिब्बत म्यांमार ईरान इराक पारस से विद्यार्थी आते थे और शिक्षा ग्रहण करते थे , ये तीनो विद्यालय आवासीय विद्यालय थे , और इन विद्यालयों में निशुल्क शिक्षा दी जाती थी। 

उस वक्त के सबसे बड़े विश्वविद्यालयो के नाम ।

  1. तक्षिला विश्वविद्यालय
  2. नालंदा विश्वविद्यालय
  3. विक्रमशिला विश्वविद्यालय

कब कहाँ और किसने की विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना।

दुनिया का सबसे पुराना विश्वविद्यालय था तक्षशिला ,इसका अनुमान भी लगाना मुश्किल था की इसका निर्माण कब और किसने कराया था, क्योंकि ये करीब 10 हजार साल से भी पुराने होने का अनुमान लगाया गया है , कुछ मतों के अनुसार तो इसे रामायण कालीन माना जाता है , और कहा जाता है की श्रीराम के भाई, भरत के बेटे तक्ष ने इसकी स्थापना कराइ थी ,परन्तु इसका सही प्रमाण नहीं मिला है , ये स्थान अब पाकिस्तान में चला गया है। 

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना का भी कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है परन्तु जब बख्तियार खिलजी ने इसे नष्ट कर दिया था ,तब उसपर बहुत बाद में खोज हुयी और उस खोज में कुछ मुद्राय मिली जिससे ये अनुमान लगाया गया की इसकी स्थापना 5वि सदी के बौद्ध  धर्म के शाशक कुमार गुप्त ने की थी। 

विक्रमशिला की स्थापना बौद्ध  धर्म के शाशक और पाल वंश राजा धर्मपाल ने 7वी सदी के अंत में कराइ थी , इसकी स्थापना बिहार राज्य के भागलपुर जिले में कराइ गयी थी, पाल वंश के शाशक धर्मपाल ने नालंदा विश्विद्यालय के विकाश के लिए भी बहुत काम किया था और 200  गाँवो को नालंदा विश्विद्यालय को उन्होंने दान में दे दिया था, नालंदा और विक्रमशिला के प्रोफेसर  एक दूसरे कॉलेज में पढ़ाने   भी जाते थे ।

विक्रमशिला विश्वविद्यालय के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य।

  • विक्रमशिला विश्विद्यालय में लगभग 3 हजार शिक्षक थे परन्तु यहाँ के छत्रो की सही गड़ना का अनुमान नहीं लगया जा सका है , फिर भी अंदाज़न अगर 3 हजार शिक्षक थे तो कम से कम 10 से 12 हजार छात्र जरूर रहे होंगे, उन सभी के लिए आवास भी आवंटित थे , तो इससे ही अंदाज़ा लगया जा सकता है इसकी भब्यता कैसी रही होगी।
  • इसमें छत्रों का चयन मेरिट के आधार पर होता था , और उनको निशुल्क शिक्षा दी जाती थी , लाखो की संख्या में विद्यार्थी यहाँ एंट्रेस एग्जाम देते थे ।
  • यहाँ बौद्ध धर्म और बौद्ध दर्शन के अलावा अन्य विषयों की भी शिक्षा दी जाती थी , जैसे तर्कशास्त्र ,ब्याकरण, तत्वज्ञान, न्याय , विज्ञान , अर्थशास्त्र , राजनीती  शास्त्र , कला , वाणिज्य इत्यादि की शिक्षा दी जाती थी ।
  • यहाँ भारत के अलावा भारत के बाहर से भी विद्यार्थी शिक्षा अर्जन करने आते थे , भारत के अलावा चीन जापान तिब्बत कोरिया ईरान इराक पारस देश से भी विद्यार्थी यहाँ आते थे , खासतौर पे तिब्बत से ज्यादे विद्यार्थी आते थे, क्योंकि पाल वंश के शाशक धर्मपाल का तिब्बत के साथ अच्छे सम्बन्ध थे और धर्मपाल  ने वहाँ एक समिति भी बनाई थी, जो तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार करती थी।
  • यहाँ उस वक्त के बड़े बड़े दार्शनिक और साहित्यकार भी यहाँ शिक्षा ग्रहण कर चुके थे , यहाँ प्रमुखतः रक्षित विरोचन ज्ञानपद , जेतरि , रत्नाकर ,ज्ञानश्री, शांति  , मित्र , ब्रज ,अभ्यंकर  और दीपंकर ने शिक्षा ली थी , उसमे सबसे ज्यादे प्रसिद्ध साहित्यकार हुए दीपंकर जिन्होंने 200 से ज्यादे ग्रंथो की रचना की वे भी बोध धर्म के अनुयाई थे।

कब किसने नष्ट किया विक्रमशिला विश्विद्यालय को।

12 वी सदी के आसपास तुर्की मुसलमानो  का आक्रमण भारत पर हुआ और उसमे मोहमद गोरी के साथ कुत्तुब्बुदीन एवब और इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी आये जो की मोहम्मद गोरी के सेनापति थे , कुतुब्बुद्दीन ऐवब  दिल्ली के आसपास के इलाको को जितना सुरु किया था तथा बिहार और बंगाल को जितने के लिए बख्तियार खिलजी को नियुक्त किया गया, और 1203 के आसपास जब वो बिहार को जित रहा था , तब वो विक्रमशिला को किला (दुर्घ) समझकर बर्बाद कर दिया और पूरी तरह नस्ट कर दिया बाद में विक्रम शिला के नीव के ऊपर मिटटी भर गयी और वहाँ खेती बाड़ी होने लगी ,परन्तु 1960 के आसपास वहाँ कुछ खंडहर होने प्रमाण मिले और पुरातत्व  विभाग ने इसकी खुदाई की तब वहाँ  विक्रमशिला के जीर्ण शीर्ण खण्हर मिले , परन्तु अब भी बहुत सारे इलाके मिटटी में दफन है। 

कुछ इतिहासकारो का मानना है की बख्तियार खिलजी जब बीमार पड़ गया और दूर दूर से हकीम बुलाये गए परतु स्वास्थ में कोई सुधार  नहीं हो रहा थाऔर उसकी  बीमारी बढती ही जा रही थी , तो उसके मुलाजिमों ने नालंदा विश्वविद्यालय में एक बार दिखने की सलाह दी , लेकिन खिलजी इस्लामिक कट्टरवादी था इसलिए वो वहाँ इलाज नहीं करना चाहता था ,उसे लगता था इतने दूर दूर से आये हकीम उसका इलाज नहीं कर पाए तो ये बौद्ध भिक्षु क्या कर पाएंगे , फिर भी जब उसकी बीमारी ठीक नहीं हुयी तो अंततः नालंदा विश्विद्यालय के प्राचार्य राहुल श्रीभद्र को बुलाया गया तब उनके समक्ष खिलजी ने शर्त रख दी की मुझे तुम्हे ठीक करना है परन्तु तुम्हारी दी कोई भी दवा मै सेवन नहीं करूँगा , प्राचार्य राहुल श्रीभद्र वहाँ से चले गए और दूसरे दिन फिर खिलजी के यहाँ आये और खिलजी को कुरान की किताब दी तथा कहा की इसे दिन में दो बार पढ़ना है जबतक की आप ठीक न हो जाय , बख्तियार खिलजी वैसा ही किया और 1 सप्ताह के अंदर ठीक हो गया , बख्तियार खिलजी को समझ नहीं आया की ये कैसे हो सकता है , कहा जाता है की आचार्य राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान की किताबो के पन्नो के किनारे पर दवा के लेप लगा दिया था , जिसे खिलजी ने थूक लगाकर पढ़ा और दवा अन्दर गयी और वो ठीक हो गया। 

खिलजी और क्रोधित हुआ ,की कैसे ये बौद्ध भिक्षु इस्लाम से आगे है उस वक्त बौद्ध धर्म का प्रचार भी बहुत जारो  पर था , इसलिए खिलजी इस्लाम के प्रचार को बढ़ाने और बौद्ध धर्म को नष्ट करने के लिए बौद्ध धर्म के  केंद्र को नष्ट करने के लिए नालंदा विश्विद्यालय और विक्रम शिला विश्वविद्यालय को जला दिया ,जिसमे करोड़ो पाण्डुलिपि और किताबे जला दी गयी और उसके साथ ही वहाँ के विद्यार्थी तथा आचर्यों को भी जिन्दा जला दिया गया।

आज भी विक्रम शिला विश्वविद्यालय के खड़हर को देख के ये अंदाज़ा लगाया जा सकता है की उसकी भब्यता क्या होगी , करीब 100 एकर से भी ज्यादे में फैला था ये विश्वविद्यालय ,पानी पिने के लिए कुवें भी खुदे हुए थे , जो आकर में छोटे परन्तु काफी गहरे थे , कुछ कुवों का अस्तित्त्व आज भी मौजूद है, 10  से 12 फिट मोटी दीवारे थी , सिंगल सिंगल पत्थर के काफी ऊंचे ऊँचे पिलर थे , इस 9 मंजिले भब्या ईमारत को 1203 में बख्तियार खिलजी द्वारा ध्वस्त कर दिया गया। 

निष्कर्ष :- अगर 12वी सदी में ये धरोहर ध्वस्त नहीँ किये गए होते तो उसकी भब्यता देखने योग्य होती शायद ये ताजमहल के टक्कर की धरोहर होती , आपका इसपर क्याविचार है आप कॉमेंट बॉक्स में दे सकते है ।

Recent Posts

Rani Kamalapati- भोपाल की महारानी जिसके नाम पर भोपाल के एक रेलवे स्टेशन का नाम हबीबगंज से रानी कमलापति रखा गया।

भोपाल मध्यप्रदेश के के एक रेलवे स्टेशन का नाम हाल ही बदलकर हबीबगंज से रानी…

1 year ago

Why did the mathematician Ramanujan not have any close friends/ आख़िर क्यों महान गणितज्ञ रमानुजम् के कोई करीबी दोस्त नहीं था।

वैसे तो महान गणितज्ञ रमानुजम् को कौन नहीं जनता जिन्हिने infinite ∞ यानी अनंत की खोज…

1 year ago

Rishi Kanad was the father of atomic theory and propounded the theory of gravitation and motion before Newton in Hindi.

महर्षि कनाद परमाणु सिद्धांत के जनक माने जाते हैं। महर्षि कणाद को परमाणु सिद्धांत का…

1 year ago

Lohagarh Fort History in hindi /लौहगढ़ का किला-भारत का एक मात्र अजेय दुर्ग।

लौहगढ़ का किला-भारत का एक मात्र  अजेय दुर्ग, मिट्टी का यह किला तोपों पर पड़ा…

1 year ago

Uda Devi Pasi वो वीरांगना जिसने 36 अंग्रेजों को अकेले मारा/16 नवंबर उदा देवी पासी बलिदान दिवस।

16 नवंबर उदा देवी पासी बलिदान दिवस।  वो वीरांगना जिसने अकेले ही 36 अंग्रेजों को…

1 year ago

Biography Of South Film Actor Puneet Rajkumar in Hindi/पुनीत राजकुमा जीवन परिचय।

29 October 2021 को साउथ फिल्म जगत के महान एक्टर पुनीत राजकुमार (Appu) के देहांत…

2 years ago