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Tadaka The queen of Buxar

Short statment about the story 

Tadaka the queen of Buxar एक लोक कथा(किवंदती) है जो  रामायण ग्रंथ के किसी भी रचयता द्वरा लिखित नहीँ है ,ये सिर्फ एक लोक कथा है जिसे पुर्खों द्वरा ही किसी विशेष स्थान के लोग ही जानते है ।

प्राम्भिक पात्र विवरण (Character Outset)

 ताड़का प्रारंभ से ही बक्सर की महारानी थी,उस वक्त बक्सर का नाम सिद्धाश्रम हुआ करता था, बाद में ब्याग्रसर और फिर अंग्रेजों समय इसका नाम बक्सर पड़ा ,उस वक्त  वहाँ बाघों का बसेरा हुआ करता था , ताड़का सुकेतु यक्ष की पुत्री थी, जिसका विवाह सुड नामक राक्षस से हुआ था जो सुंदर वन का राज था और ताड़का बक्सर यानी सिद्धाश्रम यानी चरित्रवन की महरानी थी जिसे आज हम चरित्तरवन से जानते है। इसका बसेरा ब्याग्रसर में था जिसे हम आज कवलदह सरोवर से जानते है जो अब एक tourist sport है ,महारानी ताड़का के दो पुत्र थे सुबाहु एवं मारीच दोनों चरित्रवन में ही रहते थे ।

लोक कथा (Folk tale)एक लोक कथानुसार अयोध्या के राजा दशरथ एक बार ब्याग्रसर के जंगलों में शिकार पर निकले थे जहाँ राजा दशरथ का बॉघ के साथ आमना सामना हो गया , राजा ने बाघ को तो मार दिया परन्तु खुद भी घायल हो गये और कुछ ही दूर चलने के बाद मूर्छित हो गये , उनको मूर्छित अवस्था मे ही महारानी ताड़का के पास ले जाया गया , जहाँ महारानी ने वेशभूषा से ही पहचान लिया कि ये कही के राजकुमार है । उनका इलाज चलता रहा 9 दिनों के बाद राजा दशरथ को होश आया , तब वैद्य ने उनको पूरा वृतान्त बताया ।फिर उन्हें ताड़का के पास ले जाया गया, जहाँ राजा दशरथ ने अपना परीचय दिया औऱ महारानी को वर मांगने को कहा , महारानी ने कहा वर तो मांग लुंगी परन्तु आप दे पाएंगे ? राजा दशरथ ने क्रोध में कहा रघुकुल रीत सदा चली आयी प्राण जाय पर वचन न जायी , वर मांगों ताड़का ।ताड़का ने वर मांगा हे राजन आपके इतना बड़ा राज्य इस धरती पर कोई और नही है ,इसलिए मैं यह वचन मांगती हु की तुम मुझे 14 वर्सो के लिए अयोध्या का सिंघासन दोगे ।

ताड़का के कुरूपता का कारण(The reason for Tarakasura’s ugliness)

ताड़कासुर सुरु से राक्षसी नहीं थी, परन्तु उसकी शक्तियां असीम थी और उसका विवाह सुड  नामक  राक्षस  के साथ हुआ , इन दोनों का पुत्र  होने के बावजूद मारिच  राक्षस जाती का नहीँ था, परन्तु उदंड बहुत था एक दिन उसने ऋषि अगस्त्य का योग भंग कर दिया , जिससे कुपित होकर ऋषि ने श्राप दिया कि तू अब से राक्षस बन जा, उसके पिता सूड यह सुनकर ऋषि  अगस्तय को मारने पहुँचा ,परन्तु ऋषि अगस्तय ने उसे अपने तपो बल से भस्म कर दिया , फिर ताड़का क्रोध में चिल्लाते हुए ऋषि अगस्त्य पर झपटी तो ऋषि अगस्तय ने तड़का को नारी होने के चलते उसे मारा नही बस उसे  दूर फेंक दिया तथा श्राप दे दिया कि तू कुरुप राक्षसी हो जा , उसके बाद वो राक्षसी रूप में तब्दील हो गई ।

तड़का वध  (Tadaka slaughter )

 सुंदरवन में रह रहे ऋषि मुनियों को वहाँ के राक्षसों से मुक्त कराने के लिये ,ऋषि विश्वामित्र ने श्रीराम एवं लक्ष्मण को वहाँ लेकर आये और ,अपना आश्रम सिद्धाश्रम ( बक्सर चरित्रवन) की भूमि पर बनाया।

बहुत से राक्षसों का वध किया गया ,जिसमें सुबाहु का भी वध हो गया था, और मारिच कही दूर सागर में जा गिरा , तड़का ये देख तिलमिला गई और राम जी पर प्रहार कर दिया बहुत लंबा युद्ध हुआ ,अंततः ताड़का को तीर लगा और वो गिर पड़ी ,और गिरते  ही चिल्लाने लगी राम- राम  ,श्रीराम ये सुनकर चकित हुये ताड़का के पास पहुँचे और फिर ताड़का ने उन्हे उनके पिता के वचन का वृतान्त सुनाया । और कहा रुघकुल रीत आज समाप्त हो जाएगी तब प्रभु श्रीराम ने उनसे कहा , माता मै आपका आभारी हूं , आपाने मेरे पिता जान बचाई अयोध्या सदा आपकी आभारी रहेगी  , परंतु आपके पैर आयोध्या जाने  योग्य नहीं है , परंतु आपका सर वहाँ जरूर जाएगा ,और 14 वर्ष के लिए वहाँ का सिंघासन आपका होगा। 
(ताड़का का वध  जहाँ हुआ था वो जगह आज के समय ताडिका नाला के नाम से जाना जाता है )

14 वर्ष के लिए सिँहासन(Throne for 14 year)ताड़का के वध के पश्चात उसके कपाल यानी सर की हड्डी से श्रीराम जी के लिये चटाकी बनाई गई ।

ज्ञात कहानी (Known Story)जैसा कि अपने रामायण में सुना होगा की पिता के वचनानुसार श्रीराम जी वनवास चले गये , जब भरत जी को इस बात का पता चला तो वे श्रीराम जी को लेने आ गये, परंतु राम जी नहीं लौटे , तब भारत जी उनकी चटाकी सर पर रखकर लौटे  और सिंघासन पर रखकर खुद उसके बगल में बैठ कर राज्य कार्य करते रहे ।

अज्ञात कहानी (Unknown story) ये वहीं ताड़का के कपाल से बनाई हुई चटाकी थी जिसे प्रभु श्रीराम ने वनवास जाते समय पहन लिया था, इस तरह तड़का को 14 वर्ष के लिए सिंघासन मिला ।और फिर से एक बार ” रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाय पर वचन ना जाईं “सार्थक हुआ।

The story of Ram Rekha Ghat को पढ़ने के लिए यहाँ click करें ।

धन्यावाद ।

निष्कर्ष-: मैं आपको पहले ही बता चुका हूँ यह कहानी एक लोक कथा ,एक किवंदती पर आधारित है , जो आपको किसी भी रचयिता द्वारा लिखित रामायण में नहीं मिलेगी , हमारा उद्देश्य बस इस कहानी को आप तक पहुचाना था , आपका इस कहानी के बारे में क्या बिचार है अथवा आपके पास इससे संबंधित कोई प्रश्न या जानकारी है तो आप comment box में टिप्पणी करने के लिए स्वतन्त्र है ।।

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