तलाब के खजाने का रहस्य ।
बात 400 साल पहले की है उत्तर प्रदेश के बालियां जिले के एक छोटे से गाँव मे एक जमींदार थे रघुनाथ रॉय , उनके पास बहुत सारी ज़मीन और संपत्ति थी , एक दिन उन्हें लगा कि मेरी धनसंपत्ति बहोत है परंतु मुझे मेरे मरने के बाद भी याद किया जाय ऐसी कोई चीज नहीं है , तब उन्हें लगा कुछ तो करना चाहिय जिससे लोगों का भला भी हो और मुझे मेरे मरने पर भी याद किया जाय , तभी उन्हें खयाल आया की गांव में पानी पिने की अच्छी ब्यवस्था नही है ना ही जानवरों को पिलाने के लिए पानी है तब उन्होंन एक विशाल तलाब बनाने का फैसला किया ।
बहुत सारे खोज करने के बाद उन्होंने तलाब बनाने वाले कारीगर बुलवाये, उसमे नक्कासी करने वाले special कारीगर भी बुलवाये गए और काम सुरु हुआ 52 बीघे का पोखर बनना सुरु हो गया दिनभर मश्लिम कारीगर काम करते शाम को गाँजे का कश भरते खाते सो जाते , जमींदार भी कार्य देखने पहुचते रहते कार्य की प्रगति धीरे देखकर जमींदार ने कारीगरों को समझाया कि कार्य इतना धीरे क्यों हो रहा है , तब जो सबसे बुजुर्ग कारीगर था उसने कहाँ आपको खूबसूरत तलाब बनवाना है जिसे दशको तक याद किया जाय तो आपको हमे समय देना होगा , उसमे एक 14 साल का भी कारीगर था जो बुजुर्ग के साथ पत्थरों मे नक्कासी करके उसपे गोंद और श्रीफल का लेप लगाता था , ताकि पत्थरों की मजबूती बानी रहें , तलाब को बनाने में धीरे धीरे 10 साल लग गए , उस 10 साल में बुजुर्ग कारीगर सिर्फ इट्टों पे नक्काशी के अलावा और कोई काम नही किया पूरे दिन में वो सिर्फ 10 से 12 पत्थरों को ही तैयार कर पाता था ,परंतु जब तलाब तैयार हुआ तो उसके सामने बड़ी धरोहर भी बेकार थी , उसकी चर्चा दूर दूर तक फैल गयी, उस बड़े और भब्य तलाब को देखने दूर दूर से लोग आने लगे ।
बलिया के एक बड़े जमींदार ने उसे खरीदने की लालसा रखी तब वहां के जमींदार ने बोला ख़रीद लीजिये बस मेरी लागत दे दीजिए ये तलाब आपका , बलिया के जमींदार ने रघुनाथ रॉय जी से बोले की कितनी लागत लगी है , तब रघुनाथ रॉय जी ने कहा बस 80 हज़ार रुपये का गांजा पिया है सब कारीगरों ने इस 10 साल के दौरान अब आप अंदाजा लगा लीजिये कितना खर्च हुआ होगा , बलिया के जमींदार वापस लौट गए।बहुत लोगो ने वैसा तलाब बनाने की कोशिश की परंतु न तो किसी के पास सहन शक्ति थी न ही पैसा इसलियें वैसा तलाब दोबार नहीं बना ।
उस तलाब का रख रखाव भी काफी अच्छा था कोई भी तलाब के अंदर स्नान नही कर सकता था मछली पकड़ना दंनीयअपराध था यह तक कि गाँव के बाज़ार में भी मांसाहारी चीजे नही मिलती थी
लेकिन समय के साथ जमींदार की जमींदारी खत्म हो गई धीरे उसके उसके सम्पति भी खत्म हो गयी उसके तीसरी पीढ़ी आ गयी परतु गरीबी ने साथ नहीं छोड़ा , उसके पोते रवि ने अब कमाने के लिए दिल्ली जाने मन बना लिया था , फिर उसे एक फैक्ट्री में काम मिल गया , फिर भी घंटो की मेहनत के बाद उसे ११रुपये महीना ही मिलता था , वही नजदीक एक फुटपाथ पर सोता और दिन में मजदूरी करता फिर उसे एक बूढ़े सुपरवाइजर के अंदर में काम मिल गया, वो उस बूढ़े सुपरवाइजर के साथ अच्छा घुल मिल गया था एक दिन दिन उस बूढ़े सुपरवाइजर ने उसके गांव के बारे में पूछा तब उसने अपने गांव के बारे बताया तो उस बुजुर्ग सुपरवाइजर ने बताया हमारे दादा जी और मैंने उस गांव में एक बहुत बड़ा विशाल तालाब बनवाया था तुम्हारे गांव में ।
तब रवि ने उन्हें बताया वो तालाब तो मेरा ही है , बुजुर्ग सुपरवाइजर ने बताया तुम्हारी ये हालत इतने बड़े आदमी थे तुम्हारे दादा जी हमलोगो ने आजतक का सबसे अच्छा तालाब वह बनाया था ,उसे बनाने में १० साल लगे थे और आज तुम यहाँ हमारे साथ काम कर रहे हो , चालो अभी चलो मुझे अपने गाँव ले चलो , रवि सोचने लगा ये इस उम्र अपने बनवाये तालाब देखना चाहता है और मुझे भी परेशान कर रहा है , अब उस बूढ़े बुज़ुर्ग का रवि से बात करने का लेहाज़ा ही बदल गया अब वो उसे इज़्ज़त से बात करने लगा था ,फिर वो दोनों गांव पहुंचे, गाँव पहुंचते ही वो बढ़ा सुपरवाइजर उसको लेकर तलाब पर पंहुचा और तलाब के किनारे एक कार्नर के पास गया और रवि को बोला की यहाँ किनारे पर खोदो रवि क्या करता गुस्सा तो हो रहा था परन्तु करता भी क्या सो खोदने लगा २ घंटे तक खोदा फिर उसे वह कुछ वहाँ कुछ मिला तो उस बूढ़े ने बोला निकालो उसे, रवि ने उसे निकला उसमे एक पित्तल का घड़ा था जब उस घड़े को रवि ने खोला तो दांग रह गया उसमे सिर्फ सोने चाँदी के सिक्के थे , तभी उस बुजुर्ग सुपरवाइजर ने उसे बताया की मै और मेरे दादा जी दोनों आदमी इन पत्थरों की नक्कासी यहाँ करते थे , जब तालाब तैयार होने लगा तो एक दिन तुम्हारे दादा जी यहाँ आये और बोले मुझे इस तालाब में कुछ छुपना है लेकिन किसी को कोई खबर नहीं होनी चाहिए ये बात हमारे आपके बीच ही रहनी चाहिए , तब मै और मेरे दादा जी ने इन चारों कोने में एक एक घड़ा छुपाया था , चुकी मुझे मेरे दादा जी ने कसम दी थी की मै ये बात किसी कभी नहीं बतऊँगा परन्तु तुम्हारी हालत देखकर मुझसे नहीं रहा गया अब इस घड़े को ले जाओ अपना गुजरा करो और बाकि घडो के बारे में किसी मत कहना न ही तुम निकलना शायद इसी दिन के लिए ये घड़े छुपाये गए थे।
रवि उसे लेकर घर गया , उस मुश्लिम बुजुर्ग को खाना खिलाया सुबह जब वो जाने लगे तो रवि ने उन्हें कुछ सोने के सिक्के देने लगा ,लेकिन उस बुजुर्ग ने नहीं लिया और बोला हमें लेना रहता कब का आकर ले लेते , परन्तु हम आज भी उतने खुद्दार है जितने उस वक़्त थे उसपे सिर्फ आपका हक़ है , कभी दिल्ली आना हुआ तो हमरे घर जरूर आएगा।
इस तलाब का निर्माण दीनदयाल बारैया जी ने करवाया था वो तलाब आज़ भी बहुत सुंदर है उसकी सुंदरता देखने योग्य है बीच मे उसकी स्थिति कुछ दयनीय हो गई थी परन्तु गांव वालों के निरंतर प्रयास से उस तलाब की सुंदरता फिर से लौट आई है । आज वहाँ सत्संग भजन और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते है आज भी लोग उसे देखने जाते हैं , उसकी सुंदरता देखकर आप भी मन्त्र मुग्ध हो जाएंगे , यहाँ लोग मछलियों के देखने आते है , यहाँ महाशिवरात्रि एवं नव वर्ष में बहुत भीड़ होती है मेला भब्य होता है यहाँ जाय तो आप यहाँ का छठ पूजा अवश्य देखे ।
निष्कर्ष – Inspired By true story but some events & character are imaginary to make story interesting , अब ये एक सुनी सुनाई कहानी है इसे रोचक बनाने के लिए थोड़े बदलाव किए गए है ,परंतु जो भी हो वो तलाब एक बार देखने योग्य जरूर है । अगर आप इस तलाब के बारे में जानते है और मुझसे कोई त्रुटिया हुई हो तो क्षमा करें और कुछ जानकारी देनी हो तो कॉमेंट बॉक्स में देवें ।
धन्यवाद ।
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